Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 46
________________ एकता तत्व विकमित होगा तो वही शक्ति जो अनेन विरोधों में बिखर कर हमारे मानमिक क्षिनिज को काला कर रही है बदलकर विकाम की प्रखर किरण बन जाएगी। "अमन भी वही हलाहल है जो. मालम नही तुझको अन्दाज है पीने के।" प्रकृति के गहन गर्भ में हो रही एम किमियागरी को महावीर ने हजारों वर्ष पहले पहचाना था। यह एक सूर्यरश्मि का रंग दृटकर कमे मान रंगों में इन्द्रधनप बन जाता है। कमे वही चीज़ मठकर मग बन जाती है। यह आश्चर्य जो हम अपने जीवन में पदार्थों के बीच देख रहे है हमारे मनम में भी घट रहा है। अनेकों अंधेरै है जो अचानक घनीभन होकर प्रकाश हो जाने हैं। नितने ही विप है जो अचानक अमन में बदल जाते है । एक विनिय व्यथा है मनुष्य के मानमिक अधेगें की जिम महावीर ने मना था। उमन जाना था इम तल पर मानमिक हिमा काम नहीं देती। पग्निर और आग्रह काम नही देते। यह नल बहन नाजक है जहा विकृनिए और मन्य का उद्गम यदि हम जान ले नोयिन उद्गम के उम बोन को पा लंगे जिममे फूट कर रमों के झग्ने ममम्न मानमिक क्षितिज को माधर्य में, उल्लाम से भर देगे। उमी को उन्होंने निर्वाण कहा था। आज के मनोवैज्ञानिकों ने उम प्रकाग की कहीं-कही झलक देवी है जिसे पूर्णरूप में महावीर ने देखा था। उनकी अहिमा कमंटना मे दूर भागने का मार्ग नहीं है । वे नो यह बता रहे है कि इन घघलकों में इस प्रकार के शस्त्रों में काम नहीं चलना । महावीर योद्धा थे । उन्होंने इनना जाना था कि कुछ लडादा मी है जिनमें जीन उनकी होगी जिनके हाथों में तलवार नहीं है । महावीर का मार्ग कलाकार का मार्ग है । मौन्दर्यवाधियों का मार्ग है । यह एक ऐमा नाजक मार्ग है जिमे थोड़ी मी नर्क की प्रवचना भंग कर देगी। दमकी पूर्णता और सौन्दर्यता अनुभव करने के लिये एक मृक्ष्म बद्धि और भावना का होना अनिवार्य है। महावीर ने नारी को धिक्काग नहीं । महावीर ने नारी को 35

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