Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 37
________________ पिछड़ गया, कोन कुचल गया । यह प्रवाह किम ओर जा रहा है इसका घ्यान भी इमें नहीं है । कुछ वर्ष इमके चमत्कारी फेनिल उल्लाम में रहने के पश्चात हेनरीवर्गमां भी इममे घवग गया। ___ महावीर का कहना इन दोनों में अलग है और मनप्य के लिये उनकी वाणी में वे आगा के दीप है जो विकामवादियों और मनोवैज्ञानिकों ने बझा दिये । भगवान महावीर इम वान मे इन्कार नहीं करने कि मनायों में लोलपना, हिमा, म्वार्थपरता है। वे इममे भी इन्कार नहीं करने कि मनग्य जीवन पशुओं की नग्ह एक अनिदिष्ट दिशा की ओर बढ़ रहा है । परन्तु वह यह कहते है कि ऐमा दलिये है कि वह अपने बौद्धिक ज्ञान का व्यवहारीकरण नहीं कर मका । यह व्यवहारीकरण ही नप है । नप के अर्थ है कि नैतिक और उच्च मानवीय मूल्य जो हमारी वद्धि ने अजित किये अब हममे शब्द या विचार बनकर प्रगट न हों बल्कि हमारे मूलाधार में छोटी बड़ी कर्म प्रेग्णाए बनकर प्रगट हों जो बिल्कुल नपी-नुली हों और उन्हीं आदर्शो को हमारी छोटी मे छोटी भाव-भगिमा भी प्रगट कर सके। यह जीवन प्रवाह जो हममे अनिर्दिष्ट म्वार्थमय और हिमा मे भरा है यह स्वयं मंगठिन हो, विना विचारों के, केवल वितयों के रूप में और वह मंगठन मर्वथा मानवीय और उदात्त हो । भगवान महावीर का कहना है कि एक उच्च जीवन की प्राप्ति नब तक नहीं हो मकती जब तक उच्च आदर्श और विचार हमारी कर्मगवित का दमन कर रहे हैं और उसे आदर्श मार्ग की ओर मोड रहे है। उनका कहना है कि उच्च जीवन के अर्थ यह है कि मनुप्य की जीवन शक्ति अपनी हिमात्मक, स्वार्थमय प्रवृत्ति छोड़ दे । बिना विचारों के महयोग के, विना चेतना के मार्ग निर्देशन के, वह मोते हुए भी स्वयं ऐमी अभिव्यक्ति दे जो सर्वथा आदर्श और मानवीय हो। उन्होंने कहा है कि यह सभव है कि कर्मशक्तियों के इस प्रवाह को साधा जा सके। 26

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