Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 42
________________ नारी और मोक्ष यदि हम जग गम्भीरता मे मोचे तो हम पाने है कि आज के पश्चिमी - जगत में चल रहे लिब मवमेण्ट, नारी स्वतन्त्रता, आदोलन का कारण वह विचारधाग है जिमने नारी को केवल ममर्पण का मार्ग दिवाया। महावीर की मान्यता दमकं मर्वथा विपरीत थी। यदि महा. वीर के विचारों को मही तरह समझ लिया जाय नो आज की प्रगनिशील नारी अपने को ऐमे आन्दोलनों में नष्ट करने में बचा लेगी। उसकी व्यथा मही है परन्तु उमने जो निदान बढा है वह गलत है। वह विद्रोह कर रही है पुरुष में । इस तरह वह पृरुप नत्व को हमेशा के लिये अपने मे दूर कर रही है। मनोवैज्ञानिकों की दष्टि में यह ग्यनग्नाक कदम है। प्रत्येक मनप्य में नारी ओर पुम्प दोनों तत्व है। उमम ममर्पण करने वाला भी है और वह भी है जिसे मर्पित किया जाना है। अधिकाश कर्मप्रणेताओं ने मिखाया ह मपिन होना। उन्होंने मनायो मे अपेक्षा की कि वह ईश्वर को समर्पित हो जॉय । महावीर ने कहा कि तुम स्वयं ईश्वर हो अपने को ममपिन हो जाओ। अपने दम वाक्य में महावीर ने उम वेदान्न का, उम एकत्र का व्यवहारिक प्रदर्शन किया है जो वेदान्त में कोग विचार बनकर रह गया। मेरे विचार में जो परम्पग भारतीयों ने, वेदों ने और उनिपदों ने एकता को खोजने की गर की थी और जिम गकगचार्य, याज्ञवल्क आदि ने एक ब्रह्मरूप में जानकर बौद्धिक रूप दिया था, उसी परम्पग को भगवान महावीर ने व्यवहारिक जीवन में चरितार्थ करने का मार्ग बनाया है । वह परम्परा शकगचार्य में बौद्धिक चंन्टा बनकर रुक गई क्योंकि वेदान्त ने व्यवहारिक जीवन में कदम-कदम पर उम विश्वाम को व्यवहृत

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