Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 40
________________ चिरस्थाई सम्पत्ति होगी। इमी सम्पनि को पा लेने पर एक मावीर या बुद्ध इतना माहमी और मक्त हो जाता है कि जिम उद्देश्य के लिये उसने इम शक्ति को परिकृत किया एक क्षण ऐमा भी आता है कि वह उम उद्देश्य को भी ठग देता है । मोक्ष के द्वार पर पहुंच कर महावीर मोक्ष में प्रवेश करने से इन्कार कर देने है क्योंकि जब नक एक भी जीव जीवन ममद्र में नप रहा है और उसे मार्ग नही मिल रहार तब तक उदात्न पुम्प महावीर की जीवनशक्ति और उमकी अगीम करुणा कमे गवाग कर मक्ती है कि वह अकला मोक्ष में प्रवेश करले। वह लोट-२ कर पृथ्वी पर आता है। यह उम जीवन शक्ति की परिपूर्ण मुक्ति है । यही निर्वाण है। मनप्य की कर्मशक्ति एक वृक्ष की तरह है और अमंग्य गाग्वों मे फटनी रहती है। कोई शाव ऊपर को जाती है तो कोई नीचे की ओर। जमा स्थान, जलवाय और वातावरण वृक्ष को मिलता है उम के अनमार वह बढ़ता है। इमी तरह जैमा ममाज, मान्यताए, विम्याम आदि मनुष्य को मिलते है उमी के अनम्प यह वर्मक्नि ढलनी जानी है। बचपन में यह ममाज उमकी मूल प्रवनियों को जगाना है और उनका पोपण करना है परन्तु बड़े होने पर उन्ही प्रवृत्नियों को दुगग्रह और प्रष्टता कहना है और उनका दमन करने का उपदंश देता है। धीरेधीरे कर्मगक्ति एक ऐमा वृक्ष बन जाती है जिमकी टहनिए ग्वय उम वृक्ष को दवाती है। नीचे मे वृक्ष के नने में जीवनशक्ति जोर माग्नी है कि वह ऊपर उठे पग्न्नु ऊपर में टहनिए उमी वृक्ष को नीचे को दबानी है क्योंकि जिन प्रेग्णाओं को लेकर यह वृक्ष उठ रहा है वे ममाज को मान्य नहीं है । दम नह मनग्य का जीवन प्रवाह यवा होते-होंने विरोधों का जमघट हो जाता है। उमकी कमक्ति भ्रमित हो जाती है। जीवनशक्ति के नल पर वह पूरी तरह उलझ जाता है । जीवनविन को यही छोड़कर वह प्रयाण करना है और माग्नाक के नल पर जीने लगता है । उमकी जीवनगक्ति अनेकों निषेधो, गानदच्छाओ, वामनाओं 29

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