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व्यक्तित्व के विघटन का एकमात्र कारण यही है कि मनग्य के विचारों की उपयोगिता कर्मगविन के लिये लगभग शून्य रह गयी है । ये दोनों अलग-अलग हो गये हैं । इमलिय विचार भी विलाम के माधन बन गये है । वडी-डी एमेम्बालयों में मनायना, ममानता, मंत्री और प्रेमवन्धन्त्र की बात करना दिमागी विलामिना हो गई है क्योकि वे ही महान देशों के प्रतिनिधि दूसरे देशों की महायता करने हे नो प्रन्यनर में मानसिक गलामी चाहनं है। उन्हें खाने को टुकडा देते है तो उनकी आत्मा खरीदना चाहते है।
आवश्यकता है कि हम महावीर के विचागे को कर्मगविन के निकट लाये । आज हमारी कर्मविन को पनित कर दिया है अनेकों भ्रमित करनी गक्तियों ने । वो नक कठिन नप करके महावीर ने इन्ही दुगग्रही शक्तियों पर विजय प्राप्त की थी। जीवन की कोमल गक्ति को उन्होने अक्षण्ण किया और ममम्न दुष्ट गक्तियों को ललकाग कि अगर किमी में मातम है तो वह राम ललना को छ दे। यह गाम्बमिद्ध है कि जिम स्थान पर उसके चरण होते थे उस स्थान मे मो मो योजन दूर तक दुष्ट गक्तिया भाग जाती थी। इस प्रकार महावीर माधारण मनग्यो के लिये गान स्थिति का निर्माण करने थे जिममे वह निर्विघ्न अपने चरित्र का निर्माण कर मके । आज यह मम्भव नहीं है क्योकि बचपन में ही ये दुष्ट शक्तिया उमको अनेको बहकाने पथो पर बीच ले जानी है और वहा कोई महावीर उमे मार्ग दिग्वाने नहीं आता। स्कल में जो ज्ञानी मिलने है वे मममने ह कि विचागे और आदर्शों की मदिरा पिलाकर उमे दलदल में निकाल सकते है । यदि यह सम्भव होता तो महावीर को बोलने में इतनी विरविन न होनी। ज्ञान के बाद भगवान महावीर ने मनाय को उपदेश देने मे इन्कार कर दिया था। तव इन्द्रादि की अनेक स्तुतियों के पश्चात् उन्होने उपदेश दिया। यह भी शास्त्रों मे लिखा है कि जो पश थे वह अपनी भाषा मे और मनुष्य अपनी भाषा मे महावीर की वाणी को समझने थे। इसका अर्थ यह नहीं कि वह