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व्यक्तित्व का विघटन-Loss of Individuality : आधुनिक मनुष्य की मबमे बड़ी समस्या है उसका व्यक्तिगत
विघटन । उसके भीतर एक ऐमा महसमुखी द्वन्द्व शुरू हो गया है जिससे उसकी ममम्न मानमिक शक्निएँ पारम्परिक विरोध में टूट रही हैं। यह कहना गलत है कि मनुष्य ममाज के मूल्य गिर रहे हैं। उमके नैतिक मूल्य आज भी वे ही हैं। उमकी कठिनाई यह है कि आज वे मूल्य उमे असंभव प्रतीत होते हैं । उमे अपना व्यक्तित्व एक बंधी निर्दिष्ट दिशा की ओर जाती हुई जलधाग की बजाय विखरे पानी जमा लगता है जो कोई भी अन्य दिशा ग्रहण करने को तैयार नहीं है। इसमे उमे मूल्यों के प्रति मन्देह हो गया है। त्याग और बलिदान काजोग उन मूल्यों में नहीं है क्योंकि इसमें उमे आत्महिमा की उपलब्धि होती है। उमे लगता है कि वह निप्प्रयोजन अपनी हत्या कर रहा है। इस तरह उमका व्यक्तित्व दो दिशाओं में टूट गया है । नैनिक मूल्य आज भी वैसे ही हैं परन्तु जो शक्ति उन्हें व्यवहारिक जीवन में प्रगट करती वह सन्देह से भर गई है। बातें वह आज भी आदर्श की करता है परन्तु उन पर चलने की लेशमात्र भी प्रेरणा नहीं रही है । उसकी कर्मशक्ति आज उसकी विचारशक्ति के साथ नहीं है। आज के युग की सबसे बड़ी विडम्बना यही है । यह कहना गलत है कि मनुष्य के नैतिक मूल्यों का ह्रास हुआ है। सच्चाई, ईमानदारी, परोपकार, दया, क्षमा, हिसा को आज भी वह सर्वोपरि मानवीय गुण मानता है परन्तु उसकी कर्मशक्ति उनको व्यक्त करने की चेप्टा नहीं करती। कर्मशक्ति हताश हो चुकी है। ऐसी परिस्थिति में "कर्मण्येवाधिकारस्ते" वाला सिद्धांत आज उसे
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