Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ (reverse)है। महावीर उसी साइक्लोजिकल मेल्फ से कहते है किजो यह तुम्हारी एक से अनेक में unfolding हुई है इमे वापिस ले जाओ। यह चौरासी लाख योनियों का विस्तार लौटाओ। एक माइक्लोजिकल सेल्फ ही इन चौरासी लाख अनेकों में बदल गया है। उन अनेकों का लय फिर एक में कर दो। यही भव चक्र मे मुक्ति है। इसके उपगन्न ही तुम उस अजर-अमर आत्मा की बात समझ मकन हो। जब तक इन अनेको का विलय नही करोगे तुम्हें उम अजर-अमर आत्मा का अनभव नहीं हो सकता। जब तक उसका अनुभव ही नहीं होगा तब तक हम उमे गलत समझते रहेंगे । साइक्लोजिकल मेल्फ ही वह रूप घर लेगी जो तुम आत्मा को attribute करोगे क्याकि उमे अभिनय का शौक है। जब यह अनेक मे फिर एक बन जायगी तब तुम ममझ मकोगे कि इमकी दार्शनिक मृत्यु क्या है ? इम दीप को बझाना होगा। पाश्चात्य विद्वानों को बड़ी परेशानी हुई थी यह जानकर कि जैन और बौद्ध निर्वाण को सर्वश्रेष्ठ पद मानते है जो है मर जाना, दीप का बझ जाना । उनका ख्याल था कि दीप वुझ गया तो शन्य रह गया । अतः उन्होंने कहा कि महावीर का निर्वाण शन्य है। परन्तु आज के विज्ञान ने भी बना दिया किजो चीज है वह है, वह कभी नष्ट नहीं होती, केवल पालग्नि होती है। जो नही है केवल वह नष्ट होती है। ज्योनि कभी नाट नहीं होती। माइक्लोजिकल मेल्फ के रूप में ज्योति बझेगी नो उमका पुनर्जन्म होगा एक उच्च गिम्बर पर, मिद्ध गिला पर । वही ज्योति नब वह आत्मा बनकर जलेगी जो न घटती है न बढती है, जो गद्ध, बद्ध, मक्त है। ____ महावीर ने आत्मा के सम्बन्ध में पूरी बात नहीं कहीं क्योंकि कहना व्यर्थ था। वे नीर्य कर थे। उन्होंने उनना ही कहा जितना एक नीर्थकर या पुल बनाने वाले के लिये बनाना उचित है। उमकं आगे नो स्वयं खोजने की बात है। उन्होंने बम यही कहा कि आत्मा दुर्जेय है। एक आत्मा को जीन लंने मे मब जीन लेने है हम । दम नग्ह माइक्लोजिकल सेल्फ की बात करके उन्होंने हम एक गह पर लगा दिया। जगरी दगारे

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102