Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 27
________________ कमे मच्चे मनप्य बनो। जव उनना बन जाओगे, जब यह दुर्जेय आत्मा जीत लोगेनो अमर जीवन का विहान होगा। एक और ही दीप जलेगा हृदय में । गायद यह वह आत्मा होगी जिमका वेदान्तियो ने जिक्र किया। पर आज ही उमका जिक्र कर देना उमे हमेशा के लिये खो देना है। दार्शनिक "मंकटेगर्ट" का कहना था कि आत्मा एक जीन है जिसको हरदम उद्यम के माथ हम मन्य आचरण द्वागजीने रखना है अन्यथा वह उठ जायेगी। जमे चाग डालकर चिडियो को फमाया जाता है उमी तरह जव मानमिक आत्मा मन्कर्म करनी है, द्वन्द्वो को लीन कर एकत्व प्राप्त कर लेनी है तो वह स्वय वह चाग डालना मीख जाती है जिस पर सनानन मुक्न आत्मा जाकर बैठ मके। महावीर ने "माइक्लोजिकल मेल्फ" को आत्मा कहा और उसे मोल्ड (Mould) करने के लिये कहा। उमकी प्रवृत्ति है एक में अनेकों में फैलने की-कोह बहुम्याम् । च कि वह दिव्यो मे जन्मी है, अतः यह दिव्यों की आदत हमारे शरीर में ले आई है। महावीर कहते है कि पृथ्वी पर उमका पृथ्वीकरण कगे। यहा बडे-बडे अवतार आकर भी मृत्यलोक का धर्म निभाने है। यहा वे अपना विष्णत्व प्रकट नहीं करने । माधारण पुरुषों के बीच मघर्ष करके महान बनने है। इमी तरह इस माठवलोजिकल सेल्फ को स्वर्ग की आदत छोडनी होगी और पार्थिव होना होगा। इसे फिर अपने खेल ममेटना मिखाओ। यह ईश्वर की नकल न करे । एक से अनेक न बने । जमे बच्चे मम्मी और देटी बनकर छोटे-छोटे गड़ियों के खेल करते है ऐमेही खेल यह माइक्लोजिकल मेत्फ करती है। दमी कारण एक मे अनेकहो जाती है। पर ये खेल खेलने की भी एक उम्र होती है। न जाने कितने जन्मोमे आत्मा यही खेल खेल रही है। यही चौगमी लाख योनियो मे इमका भ्रमण है। अब यह मनग्य योनि में है अब तुम्हारी बात समझ सकती है। अब उमे ममझना है कि उसे ये खेल छोटने है । ईश्वर की, पिता की नकल करता रहा तो वच्चा मीग्वेगा क्या? पृथ्वी पर आने के बाद इस आत्मा को समझना है कि यहा विकास का सिद्धात विपरीत 16

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