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ममझता? एक बडा अधिकारी छोटे को क्यो दाम मे अधिक नहीं ममझता जिमे जुबान खोलने के लिये भी उमकी इजाजत चाहिये । फर्क मिर्फ इतना है कि वह बात जो पुगने जमाने में दमन कही जाती थी आज अनगामन है । एक बड़ा ममद्ध देग क्यो आज भी नही गर्माना छोटे देगों की नीलामी करता हुआ, उनकी आग खरीदना हुआ? इमका कारण यी है कि जिम मानवीय आत्मा को हम पवित्र, निन्य, गद्ध, बद्ध, मक्त ममनने न्हे और कत्ने रहे कि वह पतित नहीं होती, वह व्यवहार में पतित हो जाती है। जो ममाज ग व्यवहारिक दुम्बद मग्ण को लेकर नही चलेगा वह मनग्य के लिये भविष्य की रचना नही कर सकेगा। महावीर ने यथार्थ के नेत्रों में घग है। उम वीर जिन पुरुष ने ममम्न कट यथार्थो मे हाथ मिलाया है। नीत्मे की नम्ह महावीर कहना है-मने हाथ मिलाया है बन्यो गीत ऋतु में और उम मद में मेरे हाथ नीले हुए है। महावीर का दर्शन मनग्य में कहना है व्यवहारिक बनो। जो मन्य व्यवहार की म्थलना में महमम नहीं किया जा मकना वह मत्य नहीं है।
महावीर की यही श्रेष्ठता है कि वे मन्दर, मोहक, बौद्धिक वातावरण ग्चकर धूप और पवित्र मगन्धो मे ममित की गई, हाथी दान की बनी आध्यात्मिक मीनार में नहीं रहतं न किमी योग के द्वाग उम आध्यात्मिक भ्रम को स्थाई करने ह । व घल पर चलन है। नब भी जब रत्नजटित इन्द्रों के माट उनके मम्मान में सक्नं थे, जब चक्रवर्ती मम्राट कतार बाघ कर अपना पौरुप उनके चरणों में अर्पित कर रहे थे, नव भी देख मकने थे हम निग्रंन्य नाथ पुत्र को द्वार-द्वार जाने, नन नयन, विनीत, कि एक ग्राम भिक्षा का कोई उनकी अजली में दे दे। वह वीर पुरप मनाय की व्यथा में कम अछना रहना । टमी व्यथा ने उमे नप के लिये उद्वेलिन किया । नप मे जब वह लौटा तो फिर उमी त्रस्त मानव ममह के बीच विचग। उन्ही की भाषा ली। उन्ही की ममम्याए। उन्हें अन्तिम मत्यों पर प्रवचन नही दिया। उनकी व्याधियं पकड़ी और उन्हें बताया
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