Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 25
________________ म्वभाव नहीं कहा। यह दुर्जेय है। इन्द्रियों के द्वाग विषयों में प्रवृत्त है। इमं जीतना है। आज की दुनियाँ जान गई है कि अमर, गाश्वत, शुद्ध, बद्ध आमा की बात करना निग्यक है। इस परम पुनीन आत्मा का जिक्र एनन्वन हजागें वर्षों में करने आ रहे हैं। परन्तु मनुष्य म्वभाव दिन पर दिन कुटिर और दुम्ह होता जा रहा है। फिर दम दार्शनिक विवेचन से उपलब्धि क्या हुई? महावीर और बद्ध ने दम व्यर्थना को जान लिया था। पूगं मन्य की बात करना अपूर्ण जीवन में जीवन को प्रमादी बना देना है। वह पूर्ण मन्य उपलब्धि में पर है यह जानते ही हम हाथ-पाव माग्ना भी बन्द कर देंगे। हम मब डायगनीज बन जायेगे और टब मे पड़े रहेंगे या चरम और मादक वस्तुओं द्वारा चनना का विस्तार करने की नको रे दहने रहेंगे ताकि इम कनवेम पर वह विगट झलकता रहे। महावीरन अर्ग मन्यों की बात कही। अनेकान्तवाद बनाया। फिर भी कहा कि अपने मार्ग पर दृढ रहो क्योंकि अपूर्ण मत्य ही तुम्हे मिल सकता है। उमे ही लंकर तुम्हारी आत्मा व्यवहारिक पथ पर चले । उमी अपूर्ण मन्य को विकमिन और एकाग्र करनी चले । पूर्ण मन्य को न वह मममेगी न पाने की चेष्टा करेगी Inferiority महम्म कर प्रमादी जरूर हो जायगी। हजारों वर्षों के मनप्य जीवन ने उपलब्धि क्या की ? आज भी हम में मनायों का गोपण करने, मनायों पर शामन करने की अमानवीय वृत्तिया क्यों है ? प्रजानत्र का यग आ गया-एक ऐमा विलक्षण युग जब सैनिक क्रान्ति के बाद मैनिक गामक गामन न करके प्रजानत्र की स्थापना कर रहे है। एक ऐमी अनहोनी बात जिसे प्राचीनकाल के लोग सुनकर चकिन हों और हमारे युग की प्रशमा करने न थकें । एक ऐमे युग में भी मनुष्य क्यों मनुष्य का गोपण उमी तन्मयता मे कर रहा है जिम तन्मयता में प्राचीनकाल में करता था? आज भी मनायों की नीलामी क्यों की जानी है ? एक फर्म में काम करने वाली प्राइवेट सैक्रेट्री को क्यों मालिक मन ही मन अपनी दामी से अधिक कुछ नही 11

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