Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ पुरुप कह रहा है कि आक्रामकना का मही उपयोग नहीं करोगे तो अहिमा तुम्हें और भी निम्न कोटि का हिमक बना देगी। महावीर ने मोक्ष के लिये आक्रमण किया। वे passive नहीं हैं। उन्होंने मनुष्य की आत्मा में बम इम आक्रामक तत्व को मही दिशा की ओर मोड़ा। उनकी अहिंमा का मार यही है। ___ इमी नग्ह ब्रह्मचर्य उनके लिये केवल सेक्स से विमुखता नहीं है। अपितु यह उम कौमार्य स्थिति में आत्मा का पुनः आम्द होना है जहां में वह चार निम्न स्थितियों में गिरी थी। वे थी लज्जा के द्वाग माथी को मोहित करना, फिर लज्जा का त्याग करके यौन मख पाना, फिर यौन में घृणा का भाव और उसके माथ ही यौन माथी के प्रति प्रनिहिमा । महावीर एंगे ब्रह्मचर्य को दुगग्रह मानने है । यह स्थायी नही हो मकना । गम् यौवन में आत्मा मन्दरमम्वरूप है । उमके वाद वह प्रजनन हेतु एक निम्न स्तर पर उनग्नी है। आत्मिक मुन्दरता लज्जा में बदल जाती है । लज्जा आकर्षित करनी है । यौन चरम मुख उम लज्जा की मृत्य है । महावीर कहते हैं कि आत्मा निर्लज्जता मे न नो घृणा कर न प्रनिहिमा । अपितु पुनः उसी मन्दरम् की प्राप्ति हेतु नप करे । यही मच्चा और स्थायी ब्रह्मचर्य है। यही मन्दरम् की प्राप्ति उनमे वस्त्र त्याग कराती है। महावीर का मार्ग आत्मा को निम्न तलों पर neutralize करना है जिममे वह उच्च तल पर जग सके । इमीलिये उन्होंने कहा कि इम एक दुर्जय आत्मा को जीन लेने मे सब कुछ जीत लिया जाता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102