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उनका मार्ग जीवन मे दार्शनिक मत्रों मे, मध्मनाओ मे जाकर खो गया था। नीन्मे ने पहली बार इम अब्मट्रक्शन. ममता प्रेम, का विरोध किया। यह विरोध बर्गमा के दलानवाइटल, जीवन प्रवाह, में स्पष्ट रूप में मखरित हुआ और यगेप के विद्वानो के मग्निाको में नट्टानो पर गिग्ने प्रपात की तरह खिलना चला गया । बर्गमा ने कहा 'टो तुम्हे जीवन में मध्म निर्जीव नन्वो की ओर ले जाता है और उन्हें मन्य कहता है । मैं तुम्हे उन मध्म, बेजान तन्वो में जीवन की ओर आने का आव्हान करता हू । लाइवनीज ने भी अपने मोनेन्म का जोम्प बनाया वह आत्मा नही जीव के निकट था।
आज पश्चिम अपनी क्लामिकी दुनिया में अलग हो गया है। एक नाममा विद्रोह ने पश्चिम की प्रतिभा को खा लिया है । जिम आत्मा को प्लेटो और अग्म्टोटल मन्य कहते है उनके विरोध में नीन्मे, बर्गमा, फायड, जग द्वाग बनाई गई आत्मा खड़ी है जो वाग्तव में जीव है । क्लान्न थका हुआ, दृट्टा, हाग, वामनाओ में जर्जर, इच्छाओं और विचारों में घिग हुआ आज का यगेप उमजीव को यथार्थ ही नही सन्य मानकर दमकी अभिव्यक्ति में जी जान में लगा है। कोथिवम और आधनिक यवा वर्ग का विद्रोह दमी परम्पग में एक और चरण है।
यह हमाग मौभाग्य है कि हमारी दानिक परम्पग में महावीर ढाई हजार वर्ष पूर्व हो चक्र है और उमी गमय उन्होंने इन दोनों विचारधागओं का मगम बना दिया था जिमम ये हमारी जाति में कभी भी नलवार लेकर एक दूसरे में यद्ध न करे । जीव ही आत्मा है और आत्मा ही जीव है। दननी मग्लना मे हम दम बान को कह मकने है। जब तक मनोवैज्ञानिक आन्मा एक रूप में मर्गाठन नहीं हुई है और जब तक उमम म्वय मिट जाने की आग नहीं जगी है नव नक वह जीव है। और जब ममम्त इच्छाए, विचार, ग्वान आदि एक मूत्र में पिरोये जा चुके है और मनोवैज्ञानिक आन्मा दार्गनिक मृन्य के लिये विव्हल होकर जल जानी है नो जीव की जगह आत्मा प्रगट हो जाती है । जीव
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