Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 21
________________ जोडा जाय । यह आप ही बनानी चलेगी कि रिम ममय क्या धर्म है, क्या मच्चा दर्शन और क्या चरित्र है। __परन्तु गायद पिछले ढाई हजार वर्षों में बद्धिजीवियों के लिये इतना घेयं रखना बहुत कठिन रहा होगा और उन्हे मविन के लिये छलांग लगाना ज्यादा धेयाकर लगा। उन्हें लगा कि महावीर का मयम बहुत कठिन है । और जब आत्मा ही ब्रह्म है और मर्वथा गद्ध और बद्ध है तो फिर इतना कठिन श्रम करने की जरूरत क्या है ? ग्मिी और छोटे गम्न में उमं जर लाया जा सकता है । उन्होंने कोशिश की । परन्तु उनकी कोगिग भाग्न की गलामी, दरिद्रता, गोपण और मग्ल दीन लोगो पर अत्याचार की कहानी बन गई । कापालिक, अघोरी तथा अन्य नात्रिक विद्याप प्रचढ होनी गई । मामाजिक जीवन में, व्यापार में, ननिकना क्षीण होनी गई। दनना बलिदान देकर भी वह अजर अमर आत्मा न मिल मकी । अब दो भयानक विश्वयद्धों के बाद मनप्य आत्मा की भीषण ट-कट का अध्ययन करके फायट और जग ने गेमाचक नथ्य प्रस्तुत किये । इम पाटमि में पहली बार महावीर को मही ढग मे ममझनं का हमें अवमर मिला है। एक वान और मामने आती है वह यह कि महावीर कही पर आत्मा गब्द का प्रयोग कर रहे है और वहीं पर जीव शब्द का और दोनो गब्दो के अर्थ एक ही लगा रहे है । तो क्या वे जीव को आत्मा कह रहे हैं ? जीवित प्राणियो को इतना अधिक महत्व महावीर क्यों दे रहे हैं ? वेदान्तियो ने नो जीवन को मृत्य की नग्ह एक म्वान कहा है फिर जीव आत्मा कमे हो मक्ता है ? यहा पर भी यह बात बहुत मे श्रोताओ को शायद आश्चर्यमिश्रित प्रमन्नता दे कि ढाई हजार वर्ष पूर्व महावीर ने वह मन्दर ममन्वय आत्मा और जीव का प्रस्तुत किया था जो पाश्चात्य जगत प्लेटो और बर्गमा जैमी शक्तिशाली चिन्तन शक्तियों के बावजूद आज तक नहीं कर मका । प्लेटो ने भी वेदान्तियों की तरह उस अजर-अमर शाश्वत आत्मा पर जोर दिया । 10

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