Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 20
________________ तरह एक सूत्र में पिरोई हुई यह आत्मा एक दार्शनिक मृत्यु के लिये व्यग्र हो उठेगी। यह दीप बुझ जाना चाहेगा। इमकी आकांक्षाएं. वासनायें, स्वप्न, विचार, भावनायें सभी इसके साथ लात हो जाना चाहंगी। वह क्षण होगा एक नई मुबह का । अलबर्ट स्वेत्जर आदि पाश्चात्य विद्वान निर्वाण की इम परिभाषा से बहुत परेशान हुए थे और उन्होंने महावीर के विचारों को यह कहकर ठुकरा दिया कि ये हमें शन्य की ओर ले जाना चाहते हैं। परन्तु उन्होंने गायद पढ़ने में जन्दबाजी की या वह अपने यूरोपीय क्लामिकी पाठ को बहुन जल्दी भूल गये । महावीर ने कोई नई बात नहीं कही थी। इम दार्शनिक मृत्य का जिक्र नोप्लेटोने भी किया था। इसके मायने प्लेटो ने भी बतलाये थे। उसने कहा था कि इसके मायने शून्य में खोजाना नहीं है। जमे नीचे की मंजिल में टेप बन्द कर दें तो ऊपर मंजिल में पानी नह जाता है, उमी तरह जब मनोवैज्ञानिक आत्मा एक मत्र होने के बाद म्वतः मृत्य के लिये, निर्वाण के लिये, व्यग्र हो उठे तो आत्मा का वह दीप बन जाएगा जिसे हम आज नक आत्मा के रूप में जानने रहे है । परन्तु दमके मायने यह नहीं कि आत्मा गन्य में खो जाएगी। इसके मायने है कि पानी किमी उंचे तल पर चढ़ जाएगा। प्लेटो ने कहा था कि इस तरह मरकर मेरी आत्मा मत्यं शिवं मुन्दरम् के बीच पुनर्जन्म लेगी। यही वान महावीर ने और भी मग्ल ढंग से कही थी। परन्तु इसके माथ उनकी गर्न थी कि पहले मनोवैज्ञानिक आत्मा के टुकड़ों को जोड़कर एक करना होगा । जब तक मनोवैज्ञानिक आत्मा को मूग्न जुड़कर एक नहीं हो जाती तब तक कोई भी उच्च आत्मा हममें नहीं जगमकती। क्योंकि एक होने तक मनोवैज्ञानिक आत्मा में एक ही नड़प रहेगी वह यह कि किम तरह मै एक हो जाऊं। उसमे आगे की वान, निर्वाण की वान, वह मोच भी नहीं मपनी जबतक उसके टुकड़े जुड़ न जायं । उमके टुकड़े जुड़ने है मम्यक् दर्शन, मम्यक् ज्ञान और मम्यक् चारित्र्य मे। भगवान महावीर कहते है कि मत्यग्राही बनो। यह टूटी हुई आत्मा आप ही बताती चलेगी कि किस तरह उसे

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