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बान नहीं है। उनमे बहुन पहले वेदों में भी यह वान कही गई है। इस बान में भगवान महावीर भी बहुन अच्छी तरह परिचित थे । परन्तु फिर भी उन्होंने कहा कि आत्मा गरीर का आकार ग्रहण कर लेती है। एक जानी पुम्प जब किमी बात को कहना है तो अल्पज्ञानियों को उसकी आलोचना में जल्दबाजी नही करनी चाहिये अन्यथा ज्ञान की जगह जिदों की लड़ाई शुरू हो जाती है और उम ज्ञानी के बाद साग तेज जिदों के यद्ध में वह जाना है।।
दरअमल महावीर जिम घटने-बढ़ने वाली आत्मा का जिक्र कर रहे वह मनोवैज्ञानिक नल की आत्मा है जिमका जिक्र फायड और जग कर रहे हैं। यह गरीर में आत्ममान है, गरीर की पीड़ा को अपनी पीटा समझती है। शरीर में विचारों और शब्दों मे इम तरह जड़ी है कि गरीर के कण-कण में व्याप्त है। यह वही आत्मा है जिसे जुग ने चेतन अचेतन और लिविडो का मंगठन कहा है। बिना इमको जाने कोई उम अजर-अमर आत्मा को नहीं जान मकता । महावीर का कहना वम इतना ही है । इस तरह कहने वाले महावीर अकेले नहीं हैं । वेदान्तियों में पहले श्वनाश्वर उपनिषद् में भी इम मनोवैज्ञानिक आत्मा के लिये कहा गया--"प्रत्येक प्राणी में वह उम प्राणी के आकार के अनमार रूप धर कर छुपा है, वह परमेश्वर हम मवको अपनी गुजलक में लपेटे हुए है। उमे जाने विना हम अमरता को नहीं जान मकने।"
महावीर और उपनिषदों के महर्षि एक ही बात कह रहे हैंआज जो कुछ तुम हो, चाहे जितने भी विकृत हो, उमे बिना जाने तुम अमर आत्मा को नही जान सकते । महावीर कहते है कि इस विघटित बौर बिग्वरी हुई आत्मा के टुकड़ों को पाम-पाम रखो, मनन करो कि यह टुकड़े हुए क्यूं, कौन मे गलत रास्ते हमने चुन लिये? इम नगह नुम अपने अतीत की भूल सुधारते हो। वे शक्तिएं जो गलत गम्तों पर लग गई सही रास्ते पर आ जायेंगी। तब यह मनोवैज्ञानिक आत्मा टेगी नहीं। आत्मा का विघटन रुक जाएगा। इसके बाद वह स्थिति होगी जहां इस