Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 17
________________ वारिक कलह, जातीय बैर आदि शक्तिएं विना उमके चाहे भी शक्तिशाली हो जाती है। मनप्य का व्यक्तित्व केवल चेनन और अचेतन में ही नही टा है। इमं एक विशाल ईश्वरीय गक्नि मर्प की नग्हलपेटे हुए है। इसका नाम जग और फायड ने लिबिडो (Libido) रखा जिमका संस्कृन पर्यायवाची जग के अनमार लोभान है । जुग कहता है कि यह वही शक्ति है जो मयं में है और जिमे ग्वेताम्वर उपनिपद् में रुद्र कहा है। यह वह शक्ति है जो गिग में प्रगट होती है तो उसके शरीरका पोपण करनी है । यवा व्यक्ति में यह शक्ति वामना, कामकता बन जानी है । यही किन कभी आगे चलकर घोर वामना विरोधी वन जानी है । यह शक्नि जब दुनियां की चोट खाकर और प्रेम में पगजिन होकर अपने ही ऊपर लौट आती है तो व्यक्तित्व रुक जाना है। घड़ी की महा चलनी है परन्तु आत्मा के लिये ममय रुक जाता है। अधिकांश लोगों का जीवन यौवन की कुछ दिनों की चहल-पहल के बगद इमी तरह बन्द हो जाता है। नव उनकी आत्मा को यह लिबिडो (Libido) एक भयानक मर्प वनकर जकड लेती है जिमके पाग में घटती हुई हमारी आत्मा हर कीमत पर मक्ति चाहती है। यदि पाप करके आनन्द को उमे कुछ मांमें मिल सकें तो वह उमके लिये भी नैयार हो जाती है। ___मनोविज्ञान मनप्य की आत्मा में केवल इननी ही गहगई तक झांक पाया है। इममे आगे अभी उमकी पहुंच नही हो मकी। परन्तु शंकराचार्य, काण्ट, प्लेटो, हिगल, ब्रेडले आदि दार्शनिकों ने एक दूसरी ही तरह की आत्मा का जिक्र किया है। उनके अनमार मनोवैज्ञानिक जुग और फायड जिसे आत्मा कह रहे है वह माया है, प्रपच है। मनुष्य की आत्मा इससे परे है और वह नित्य, शुद्ध, बुद्ध और मुक्त स्वभाव है । वह ब्रह्म है । वेदान्तियों को यह बात सुनने में बहुत मुन्दर लगती है और अधिकांश बुद्धिजीवी वर्ग आत्मा की इस परिभाषा को स्वीकार

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