Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 16
________________ प्रात्मा या जीव मनुष्य के जिम व्यक्तित्व का विघटन आज पूरे बौद्धिक जगत को क्लान्त कर रहा है वह व्यक्तित्व है क्या? शेक्मपियर ने कहा कि हम अम्नित्व का एक क्षण है जिसे अज्ञान का अधेग घेरे हए है। वैज्ञानिक दृष्टि में यदि हम देखे तो भी हम पाते है कि हमाग जीवन कुछ वर्षों की एक कहानी है। कहा मे हम आये और कहा चले गये दमका उनर हमे विज्ञान नही देना। मनोवैज्ञानिको ने विशेषकर फायड और जग ने दम प्रग्न का उना देने की भग्मक चंटा की और निःमदेह मनप्य समाज उनकी नोजो का ऋणी है । जग ने अपने क्लिनिक में की गई खोजों के आधार पर मिद्ध किया कि मनाय का व्यक्तित्व चेतन और अचेतन इन दो भागों में बटा हुआ है । चेतन नो व्यक्तित्व का वह अग है जिसे मनाय मोच-समझकर चनकर अपना बनाता है । यह उमके विचार, भावनाओ, अनभव, इच्छाओं और आकाक्षाओं का वह ममूह है जो उसने अपने लिये चनी है। अचेतन उममे मृक्ष्म रूप मे मचिन मनग्य जाति का दनिहाम है । वह मभी शक्निए जिन्होंने कभी महाभाग्न और गमायण की लटाटा लड़वाकर मनुष्य कोदाम बनाया हमारे अचेनन मेमचिन है । एक जानिने दूमरी जाति का शोषण किया-ये मभी घटनाए छोटी-बड़ी शक्तियों का एक मुप्त ममूह बनकर मनप्य के अचेनन में पड़ी है। जैसे-जैम मनप्य बडा होता जाता है उसके चेतन पर अचेतन का अमर बढने लगता है। धीरेधीरे उमका वह चेतन व्यक्तित्व जो उसने अपने लिये चना था दव जाता है । और अचेनन की गनिए विकमिन होकर उममे जोर माग्ने लगती है। यही कारण है कि मनुष्य में धार्मिक अमहिष्णुता, पारी

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