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इस सब का सार यह है कि महावीर के संस्कारित जैनधर्म को लिच्छवियों एव वशालो के राज्यकर्ता-वंश द्वारा प्रारम्भिक दिनों में सभी अोर से अच्छा और सुदृढ़ आश्रयाप्राप्त हया था। इनके द्वारा ही- महावीर का धर्मवीर, अग, वत्स, अवंती, विदेह और मगध में प्रचार पाया था और ये सभी उस काल के अत्यन्त शक्तिशाली राज्य थे। यही कारण है कि बौद्धग्रन्थों में वैशाली के राजा चेटक का कुछ भी वर्णन नहीं मिलता है हालांकि उनमें वैशाली के संवेधानिक शासन का अच्छा वर्णन दिया हझा है।' डा. याकोबी के शब्दों में कहें तो 'बुद्धों ने उसका कुछ भी उल्लेख इसलिए नहीं किया कि उसका प्रभाव...प्रतिद्वन्द्वी धर्म के लाभ में प्रयोग हो रहा था। परन्तु जैनों ने अपने तीर्थकर के मामा और ग्राश्रयदाता की स्मृति सजीव रखी कि जिसके प्रभाव के कारण ही वैशाली जैनधर्म का गढ़ बन गई थी जब कि बौद्धों द्वारा वही पाखण्डियों और नास्तिकों के अड्डे के रूप में चित्रित की गई है।
इनके सिवा भी जो जनसूत्रों में लिच्छवियों के सम्बन्ध में यत्रतत्र उल्लेख मिलते हैं, उनसे यह प्रमाणित होता है कि वे जैनी ही थे । सूत्रकृतांग को ही पहले लें जहां कि जैनों द्वारा उन्हें बहुत सम्मान प्राप्त बताया गया है। उसका कथन है कि 'जन्म से ब्राह्मण या क्षत्रिय उग्र कुल का वंशधर अथवा लिच्छवी जो कि साधू होकर दूसरों से प्राप्त भिक्षा से निर्वाह करता है, अपने प्रख्यात गोत्र को भी गर्व नहीं करता है।''
कल्पसूत्र का लेख भी देखिए 'जिस रात्रि में भगवान महावीर सब कर्मों का क्षय कर निर्वाण प्राप्त हए थे उस रात्रि में कासी, कोसल के अठारह राजों, नव मल्लिकों, नव लिच्छवी राजों ने अमावस्या के दिन, दीप जलाए पोपण पर जो कि उपवास का दिन था। उनने ऐसा कहा कि ज्ञान का दीपक क्योंकि पाज अस्त हो गया है, हम द्रव्य दीएक का प्रकाश करें।
जैनसूत्रों के इन दो उल्लेखों के सिवा उवासगदसायों में जितशतु राजा का उल्लेख है जो कि हरनोली के अनुसार जैन और लिच्छवी राजा चेटक के सम्बन्ध में परीक्षण में अत्यन्त महत्व का है। जैनों के इस सातवें अग के दस अध्ययनों में से पहले अध्ययन में सुधर्मा जम्बू से कहते हैं कि 'निश्चय ही हे जम्बू ! उस समय में उस काल में वारिणयागाम नाम का नगर था...वारिणयागाम के बाहर ईशान कोण में एक द्विपलाम नाम का चैत्य था। उस समय में वारिणयागाम का राजा जितशत्रु था ।...उस समय में उस गांव में ग्रानन्द नाम का गृहस्थ रहता था जो परम समृद्ध और सर्वश्रेष्ठ था।
___ उस समय में उस काल में श्रमण भगवान् महावीर वहां पधारे । लोक समूह उपदेश सुनने को वहां पाया था राजा कुरिणय ने जैसा एक प्रसंग में किया था वैसे ही राजा जितशत्रु भी उनका उपदेश सुनने बाहर आया था और इस प्रकार...वह उनकी सेवा में रहा था।
1. देखो दे, नोट्स प्रान एंजेंट अग, पृ. 322; व्हूलर, इण्डियन स्यैक्ट ग्राफ दी जनाज, पृ. 27 । 2. देखो याकोबी, संबई, पूस्त. 22, प्रस्ता. प. 12 । देखो टरनर, बंएसो, पत्रिका, सं. 7, पृ. 992 । 3. याकोबी, वही. प्रस्ता. प. 13। 4. याकोबी, से बुई, पुस्त. 45, 43211 5. 'कार्तिक महीने की प्रमावस्या की रात्रि को दिये जलाकर जैन महावीर निर्वागा का उत्सव मनाते हैं । वहीं,
पुस्त. 22, पृ. 266। 6. याकोबी, मेबुई, पुस्त. 22, पृ. 266 । 7. '...महावीर के ।। गणधरों में से एक, जो उनके बाद युगप्रधान हा था. उसका उत्तराधिकारी अन्तिम - केवली जम्बू था।' हरनोली, वही, पृ. 2, टिप्पण 5 । 8. ग्रानन्द अणुवती श्रावक का जैनों में उत्कृष्ट उदाहरण हैं। देखो हेमचन्द्र. योगशास्त्र, प्रकाश 3 श्लो. 151,
हरनोली. वही. प. 7 ग्रादि। 9. बद्री प. 3-7 9।
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