Book Title: Uttar Bharat me Jain Dharm
Author(s): Chimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
Publisher: Sardarmal Munot Kuchaman

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Page 144
________________ [133 शगुफा में भी संक्षेप में पुनरावर्तित हुए हैं अनेक व्याख्याएं की गई हैं। जिला विवरणिका का सम्पादक का विश्वास है कि इसमें पार्श्वनाथ ही तीर्थंकरों में से महान् सम्मानित दिखाया गया है । भावदेवसूरि के पार्श्वनाथचरित, कल्पसूत्र और स्थविरावली जैसे प्रमाणों में उल्लिखित पार्श्व के जीवन प्रसंगों को संक्षिप्त सर्वेक्षण करने पर यह अनुमान निकाला जा सकता है कि मध्यकालीन जैन दन्तकथाएं तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ का कलिंग सहित पूर्वीय भारत से सम्बन्ध जोड़ती हैं और इसलिए यह सूचित करना अनुचित नहीं है कि हाथी काय पार्श्वनाथ की भावी पनि प्रभावती को उनके सम्बन्धियों एवं परिचारकों सहित प्रस्तुत करता है, धोर उसके बाद का दृश्य कलिंग राजा द्वारा उसके अपहरण का है, चौथा दृश्य प्राखेट के समय वन में पार्श्वनाथ द्वारा उनकी विमुक्ति का है, उसके बाद का दृश्य लग्नोत्सव समय के भोजन का सातवा लग्नक्रिया का और आठवां नीचे की पार्श्व में पार्श्वनाथ के तीर्थकर रूप में भ्रमण और उन्हें दिए गए मान-सम्मान का प्रदर्शन करता है । * 3 इस पर से अनुमान किया जा सकता है कि ये सब दृश्य पार्श्वनाथ या उनके किसी विनयी शिष्य के जीवन घटनाओं सम्बन्धी ही हैं हालांकि ऐसा अनुमान दी रिमेन्स ग्राफ उड़ीसा, एंशेंट एण्ड मेडीवल ग्रन्थ " के विद्वान लेखक का बहुत खींचतान से निकाला हुआ ही लगता है क्योंकि यह प्रमुखतया बौद्ध गुहा है कि जिसके सम्बन्ध में पहले ही कहा जा चुका है । ऐसा ही भ्रम गणेश गुफा के विषय में भी उठता है क्योंकि रानी नूर की भांति ही इस गुफा के वेष्टीनीशिल्प में घाघरावाले सैनिक हैं, इसलिए जिला विवरणिका का सम्पादक इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि यह दृश्य कलिंग के यवन राजा द्वारा प्रभावती के हरण की मध्यकालिक कथा और फिर जैनों के तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ द्वारा उसकी मुक्ति का निर्देश करता है।" जब हम पेरदार घाघरा पहनाव वाले सिपाहियों को परदेशी रूप में पहचानते हैं तो उपयुक्त परिणाम का समर्थन भी हो जाता है कि पार्श्वनाथ ने यवन राजा के पाश से प्रभावती को जैसा कि जैन दन्तकथा कहती है, मुक्ति दिलाई हो फिर भी गंगुली विवरणिका के विद्वान सम्पादक से सहमत नहीं है क्योंकि वह इस गुफा को बौद्ध गुफा ही मानते हैं। उनके अनुसार यह मूर्तिशिल्प बोद्धमूल का निर्भ्रान्त है ।' इस सब विवेचना से यह स्वाभाविक ही है कि जैन श्रमरणों ने अपने परम पूज्य तीर्थंकर की जीवन घटनाओं को अपनी निवास गुहाम्रों या कोटड़ियों में खोद दिया हो । स्थापत्य की दृष्टि से दूगरे नम्बर की महत्व की गुफाएं हैं जयविजय स्वर्गपुरी सिंह और सर्व गुफाएं स्वगपुरी गुफा के अतिरिक्त अन्य कोई भी इनमें बड़े ऐतिहासिक महत्व की नहीं है । पर हि गुफा में एक बौद्ध लेख है और यह कि डॉ. फर्ग्युसन और बरग्स के अनुसार " सिंह और पं गुफाएं इस टेकरी पर की मूर्तिशिल्प की प्राचीनतम गुफाए 9 हैं प्रसंग वश यह भी कह देना चाहिए कि सर्प गुफा जो कि हाथीगुंफा के पश्चिम में हैं, कि प्रोसारी इम 1. वही । देखो चक्रवर्ती, मनमोहन, वही, पृ. 9-10 । 2. देवो हेमचन्द्र त्रिपष्टि शलाका पर्व 9 पू. 197-201 मी । 3. तत्राशासीत् कलिगादिदेशानामेकनायकः 4. बंगाल डिस्ट्रिक्ट गजेटियर पुरी, पु. 256 5. गंगुली, वही, पृ. 39 । 6 यवनो नाम दुर्दान्तः हेमचन्द्र वही और वही स्थान । 7 बंगाल डिस्ट्रिक्ट गर्जेटियर पुरी, वही और वही स्थान "यह दृश्यावली वेष्ठनी उस कथा की पूर्व कथा लगती है कि जो रानी गुंफा की ऊपर की मंजिल में विकास पाई हैं।" चक्रवर्ती, मनमोहन वही. पू. 16 8. मंगूली वही. पु. 43 9. फग्यूसन एण्ड बम्पेर्स, केव टेयेम्युल्स ग्रॉफ इंडिया 68 " Jain Education International वही, श्लो. 95, पु. 199 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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