Book Title: Uttar Bharat me Jain Dharm
Author(s): Chimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
Publisher: Sardarmal Munot Kuchaman

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Page 162
________________ [151 में पूजी जानेवाली जिनमूर्ति ही होगी शिलालेख स्पष्ट ही कहता है कि यह मूर्ति राजा नन्द उठा ले गया था याने वह उसे कलिंग से मगध में ले गया होगा । हम यह भी देख आए हैं कि यह राजा नन्द जैनों का नन्द मि था नकिन जैसा कि श्री स्मिथ ने जायसवाल आदि विद्वानों ने साधार से मान लिया है।" यदि ये सब बातें ऐतिहासिक दृष्टि से प्रामाणिक मानी जाए तो यह कहने में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं है कि बौद्धधर्म के कलिंग में पांव जमने के बहुत पहले से ही जैनधर्म वहां जम चुका था और जनता में लोकप्रिय हो गया था । संक्षेप में नन्द 1म की कलिंगविजय के समय वहां जैनधर्म प्रचलित धर्म था । इसे समर्थन करते हुए जायसवाल कहते हैं कि नागवंश को नन्दिवर्धन अर्थात् राजा नन्द के समय में ही जैनधर्म उड़ीसा में प्रवेश कर चुका था...। खारवेल के समय के पूर्व उदयगिरि पहाड़ी पर महंतों के मंदिर थे क्योंकि शिलासेल में उनका अस्तित्व सारवेल के समय से पूर्व संस्थानों के रूप में वग किया गया है। ऐसा लगता है कि कुछ सदियों से जैनधर्म उड़ीसा का राष्ट्रीय धर्म था।" इसका समर्थन एक जैनदन्तकथा से भी होता है जिसमे ई. पूर्व छठी सदी में उड़ीसा को क्षत्रियों का केन्द्र माना गया है । उस दंतकथा में कहा है कि उड़ीसा में महावीर के पिता का क्षत्रिय मित्र राज्य करता था और महावीर वहाँ गए थे। 'उड़ीसा एण्ड हर रिमेन्स' ग्रन्थ को लेखक विद्वान कहता है कि 'जैनधर्म की जड़ें इतनी गहरी थी कि हम उसके चिन्ह 16वीं सदी ईसवी तक भी पाते हैं । उड़ीसा का सूर्यवंशी राजा प्रताप रुद्र देव जैनधर्म की ओर बहुत भुका हुआ था।' लेख की अगली पंक्ति का विचार करने की ओर झुकें इसे पहले यह संकेत भर कर देना चाहते हैं कि शिलालेख से इस निष्कर्ष पर पहुंचने के भी अच्छे प्राधार हैं कि ई. पूर्व पांचवीं सदी के प्रारम्भ जितने प्राचीन समय में ही जैनों में मूर्ति पूजा का प्रचार था। इस मूर्तिपूजा के प्रश्न का विचार विस्तार से आगे इसी ग्रन्थ में हम करेंगे।" शिलालेख की इस बात को दृष्टि में रखते हुए श्री जायसवाल तीन महत्व के निष्कर्ष निकालते हैं जो कि इस प्रकार हैं:- ( 1 ) यह कि नन्द जैन था, और (2) यह कि जैनधर्मं का उड़ीसा में प्रवेश बहुत ही पहले, सम्भवत; महावीर के बाद ही या उनके समय में ही हो गया था (जैन दंतकथा उनके उड़ीसा में बिहार की बात कहती है 1. निर्दिष्ट नन्द राज पुराणों का नौवां शैशुनाग राजा नन्दिवर्धन लगता है । उसको एवं उसके उत्तराधिकारी महानंदिन 10 वां का नन्द ही उन नौ नन्दों से पृथक कि जो चन्द्रगुप्त और 10वें नन्द के बीच में होते है, मानना आवश्यक है। मेरे ग्रन्थ अर्ली हिस्ट्री आफ इण्डिया के 1914 के तीसरे संस्करण में मैंने नन्दिवर्धन का राज्यारोहण ई. पूर्व 418 के लगभग रखा था। परन्तु अब इसे ई. पूर्व 470 के या इससे भी कुछ पूर्व में रखना चाहिए स्मिथ, राएसो पत्रिका 1918, पृ. 547 2. विजया पत्रिका सं. 3, प. 448 बिउप्रा पु. 1 3. ततो भगवं मोसलिंगम्रो....तत्व सुभागही नाम रडियो पियमितो भगवधो सो प्रोएड तनो सामी मोसलिंग...। आवश्यक सूत्र . 219-220 4. प्रताप रुद्र देव, गजपति राजों में से एक कि जिसने ई. सन् 1503 से राज्य किया, ने जनथमं परिस्थान कर दिया...लोग एसो पत्रिका, सांग 28. सं. 1 से 4 और 5, 1859. पू. 189 1 5. ली. वही पृ. 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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