Book Title: Uttar Bharat me Jain Dharm
Author(s): Chimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
Publisher: Sardarmal Munot Kuchaman

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Page 185
________________ 174 ] हुआ है, और फ्लीट के अनुसार मंदसौर का शिलालेख इसका समर्थन करता है ।" इस प्रकार गुप्त संवत् का प्रारम्भ ई. सन् 319 में 113 के हैं, अनुक्रम से ई. सन् 376 और 432 के कहे शिलालेख चन्द्रगुप्त 2 य का और दूसरा शिलालेख में कहे अनुसार कुमारगुप्त म पहले से ही कहा जा चुका है गुप्तों का प्राचीनतम शिलालेखी अभिलेख सं. 82 से बहूलर का यह कहना सत्य ही है कि पहला शिलालेख जैसे कि चन्द्रगुप्त 2य के उसके विषय में उसका अनुमान स्वीकार कर लिया जाता है तो 'उसकी तिथि, सम्वत् प्रथम उल्लेख है जो कि अब तक मिल सका है ।" लेने से मथुरा के ये दो शिलालेख कि जो वर्ष 57 और जा सकते हैं स्वीकृत गुप्तवंश के कालक्रमानुसार पहला का समय का है ।" जैसा कि प्रारम्भ होता है और इससे डा. समय का हम कह चुके हैं, यदि 57, गुप्त सम्वत् का सर्व 1 इन दो मथुरा मिलालेखों के सिवा मी जैनों से सम्बन्ध रखने वाले दो गुप्त सम्बन्धी अभिलेख और भी हैं। उनमें कालक्रमानुसार पहला उल्लेख उदयगिरि गुफा का शिलालेख है जिसमें स्पष्टत राजा के उल्लेख के स्थान में प्रारम्भ के गुप्त राजों की वंशावली दी हुई है उसकी तिथि पर से यह भी कुमारगुप्त 1म के समय का ही लगता है उसमें तिथि शब्दों में दी गई है जो वर्ष 106 ई. सन् 425-426) के कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की पांचवें सूर्य दिवस की है ।" उस शिलालेख के उस अंश का अनुवाद कि जिससे उसका जैन होना स्पष्ट प्रगट होता है इस प्रकार है उसने ( याने शंकर जिसका नाम 6ठी पंक्ति में है) जिसने (प्राध्यात्मिक) रिपुत्रों को जीत लिया है, (और) जिसने शांति और संयम साध लिये हैं, (इस) गुफा के मुख में जिन की यह मूर्ति नाम की विस्तृत फणों और परिचारिका देवी (भरपूर सजी हुई) सहित, (श्रीर) जिनों में सर्वोत्तम ऐसे पार्श्व के नाम वाली, निर्मित (और स्थापित ) कराई | वह निश्चय ही संत प्राचार्य गोशर्मन... का शिष्य है' श्रादि । " इस प्रकार उदयगिरि गुफा के शिलालेख का उद्देश गुफा के मुख पर पार्श्व या पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापना का उल्लेख करना मात्र है। जिस दूसरे शिलालेख की ऊपर बात कही गई है वह है कुमारगुप्त म के पश्चात् होने वाले स्कन्दगुप्त का कहाउं की पाषाण स्तम्भ पर का लेख । खाखी रेतिये पत्थर का यह स्तम्भ जिस पर कि 7 1. "प्रव तक में ने यही बताया है कि पहले पहले की गुप्त तिथियां धौर उनके साथ ही अन्य भी जो कि उसी सम श्रेणी की सिद्ध की जा सकती हैं, सब ई. 319-328 या उसके आसपास के युग की मानी जानी चाहिए जैसा कि एलबरूनी ने ध्यान खींचा है और जो वीरावल के शिलालेख, वल्लभी संवत् 945 के से समर्पित है।" फ्लीट, वही, प्रस्ता. पृ. 16 आदि । 2. देखो वही प्रस्तावना पृ 23 3. देखो स्मिथ, इण्डि एण्टी, पुस्त. 31, पृ. 265-266 चन्द्रगुप्त का राज्यकाल ई. लगभग 380 से ई. लगभ 412 तक रहा था और कुमार गुप्त का ई. लगभग 413 से ई. लगभग 455 तक देखो वही स्मिथ प हिस्ट्री ग्रॉफ इण्डिया, पृ. 345-346; भण्डारकर, वही, पृ. 48-49; बानयैर्ट, वही, पृ. 47-48 वही और वही स्थान । 5. देखो ली, वही, लेल सं. 61, पृ. 258 1 4. 1 6. वहीं, पृ. 259 देखो स्म इण्टि एण्टी, पुस्त. 11, पृ. 310 7. "इस शिलालेख का प्राचीन काकुम या काकुमग्राम, घोर बाज का कहाउं या कहवा उत्तर-पश्चिम प्रांत जिसका कि सब नाम उत्तर प्रदेश है, के गोरखपुर जिले की देवरिया या देखोरिया तहसील सलमपुर माहोली परगना का प्रमुख नगर, सलमपुर मझोली के दक्षिण से पश्चिम की ओर पांच मील दूर स्थित एक गांव है।" एसीट -फ्लीट, वही, पृ. 66 1 देखो भगवानलाल इन्द्रजी, इण्डि. एण्टी, पुस्त. 10, पृ. 125 8. देखो स्मिथ, वही, पृ. 346 पर बैठा था। देखो वही कहा जाता है कि कुमारगुप्त 1न के बाद ई. लगभग 455 में यह राजसिंहासन बार्पेट, वही पृ. 48 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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