Book Title: Uttar Bharat me Jain Dharm
Author(s): Chimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
Publisher: Sardarmal Munot Kuchaman

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Page 200
________________ [ 189 में रहे मय एवं लालच से सावधान करते हुए उससे बचकर अपने सिद्धान्त में छड़ कर उसे मोक्ष की घोर खींच ले जाने का ही है । पहले अंग की ही भांति यह भी दो श्रुतस्कन्धों में है । याकोबी तथा अन्य विद्वानों के अनुसार सिद्धान्त के प्राचीनतम अंशों में इसका प्रथम स्थान है । जैसा कि हम बौद्ध साहित्य में देखते हैं, यहां भी गद्य और पद्य दोनों ही मिले हुए हैं और यंत्र तंत्र रोचक उपमा के अनेक दृष्टांत दिए हैं। उदाहरण स्वरूप एक उपमा दृष्टांत देलिए जैसे (हिंदु जन्तु) बाजपक्षी (डंक) उन फड़फड़ाते पक्षी शावकों को कि जिनके पंख अभी पूर्ण विकसित नहीं हुए हैं, उठा कर ले जाते हैं... वैसे ही सिद्धान्त विहीन मनुष्य उन बालजीवों को कि जिनने धर्म का गहन विचार नहीं किया है, ललचा कर खींच ले जाते हैं।"" सूत्रकृतांग का प्रारम्भ बुद्ध और अन्य अर्जन धर्माचार्यों के जो थे, सिद्धान्तों के निरसन से हुआ है । फिर भी, जैसा कि विटर्निट्ज विषय में जो कुछ हमें प्राप्त होता है, वह घर्जन मतों के सिद्धान्तों से जिसका एक उदाहरण नीचे दिया है, बौद्ध शास्त्रों में भी पाया जाता है : महावीर के प्रमुख सिद्धान्त का विशेष करते कहता है, इस सूत्र से कर्म और संसार के अधिक भिन्न नहीं है। ऐसा दार्शनिक लक्ष्य ' मात्र में दुःख पाता हूं, ऐसा ही नहीं है । संसार के सभी प्राणी दुःख अनुभव करते हैं । चतुर पुरुष को ऐसा विचार करना चाहिए और जो कुछ भी दुःख या पड़े उसे पविकारी शांति से भोगना चाहिए ।" 1:0 सापू- जीवन के मार्ग में आने वाले अनेक कष्टों और प्रलोभनों का इसमें सूक्ष्म विचार किया गया है और प्रत्येक स्थान पर बाल साधू को ढ़ता से उन पर विषय पाने का उपदेश दिया गया है। उसे स्त्रियों के प्रलोभन से सचेत रहने की विशिष्टता से प्रेरणा की गई है। हम बहुधा देखते हैं कि इस प्रकार की चितौनी ऐसी यथार्थ रसिकता में पगी होती है कि सारा वातावरण घरेलू और यथार्थवादी हो जाता है। उदाहरणार्थ देखिए 'जब उनने (स्त्रियों ने) उसे वशीभूत कर लिया है तो उसको फिर वे अनेक प्रकार के कार्यों के लिए भेजती रहती हैं। जैसे कि, तू बी को उत्कीर्ण ( पर खुदाई करने के लिए सूची खोज कर लाओ, कुछ अच्छे फल लाओ । शाकादि पाचन के लिए ईंधन लाओ मेरे पदों में महावर लगाओ, मेरी पीठ खुजताओ... मुझे मेरी सुरमादानी, काजल कोटिविया, गहनों का पिटारा, बांसुरी ला कर दो.... चिऊंटी, कंधा, और पोटी बांधने के लच्छे आदि ला कर दो दर्पण ला कर दो या सामने लिए खड़े रहो, दन्तून पास ला कर धरो 14 । धागे के दो बंग याने स्थानांग और समवायांग का हम एक साथ ही विचार करेंगे बीद्धों के अंगुत्तरनिकाय की भांति ही, जैनागमिक साहित्य के इन दोनों ग्रन्थों में संख्या क्रम से धार्मिक महत्व की अनेक बातों की चर्चा की गई है। स्थानांग में संख्या 1 से 10 और समवायांग में 1 से 100 तक ही नहीं अपितु 10,00,000 तक की संख्या के विषयों का विवेचन हुआ है । इन दोनों के विषयों की पर हम देखते हैं कि स्थानांग में हमें नष्ट बारहवें अंग दिट्टिवाय की विषय-सूची, सात निन्हव याने संघ में मतभेद उत्पन्न करने वालों के नाम, स्थान और विषय की जानकारी प्राप्त होती है । समवायांग में, पक्षान्तर में, बारह अंगों के विषयों सूची का विचार करने 1. देखो याकोबी, वही, प्रस्ता. पृ. 41; विटर्निट्ज, वही, पृ. 297 2. देखो याकोबी, सेबुई, पुस्त. 45, पृ. 3241 3. ait aratat, age, gen. 45 g. 251 1 5. विनिट्ज, वही, पृ. 300; बेल्वलकर, वही और वही स्थान । 6. देखो विनिज वही और वही स्थान: Jain Education International 4. वही, पृ. 226, 277 ब्वेवर, इण्डि एण्टी, पुस्त. 18, पृ. 370 I For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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