________________
6 ]
पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध
197
198
2
5
10
14
26
2
3, 6, 7 स्त्रोत्र
कास
19)
24 विभोग्य
स्त्रोत
पिण्ड प्रोर
कम
220
21
206
21
202 12
18
24
205 1
204 46 स्थापित (स्य)
समूह दोनो ही
को
"
सूत्रकृतांक
को
इसमें
समयमयी
सम्प्रदायों से
विद्वद्यभोग्य
घाम
2 विवाद
4 5
9 करवा
11
19 को
26 मथुरी
30 नहीं दी थी
1
स्थापितों
विभिन्नताथों
हमें
4 उनकी
5 की
07 29 गुफाओं ::08 1 स्थपित
5 बावजूद परन्तु
9
28 मनुष्य ने पहले
29
पहले सज्जा
Jain Education International
शुद्ध
कि याने और सुधारने
विद्वद्भाग्य
स्तोत्र
पिण्ड श्रीर
कभी
सुत्रकृताङ्ग
के
इससे
समसमयी
स्तोत्र
सम्प्रदायों में
विद्वभोग्य
स्थापत्य
दोनों ही समूह
के
पृष्ठ पंक्ति मशुद्ध
208 29 रूपों का
209 1,5 209 15 सिवा
210
उस 213
मथुरा
नहीं थी
विभिन्नताओं के साथ साथ विद्यमान था। यही विनिता हमें
211
घाम
बिहार 215
करना
स्थापत्यों 219
214
DOM 2004-0
6 स्वस्थ्य
224
224
225
1226
30 प्रश्नों
3
22 को
19
212 4 स्थगित
26
10
1 नहीं
31
5
का 223 6
31
23
18
27
31
अवश्य ही विषय
11 25
27 यक्षों
9
8
यहा नहीं
तत्वों
उनका
227 1 FENT 229 6 गुफाओं में
12
स्थापत्य
बावजूद
किया और सुधारा
मनुष्य पहिले
पहिले सज्जा
For Private & Personal Use Only
मग्नता
...ठी
शिष्यों
वस्तु
शिल्पे
है कि वह है
को
1838
1924
इज
1824
महता. नि. वि.
हीरालाला / ... भाग 1
स्पेक्ट / ... भाग 1 जैनतस्वदन
269
शुद्ध
रूपों को
सिवाय
स्वस्थ
प्रश्न
विषय अवस्य हो
के
यही नहीं तत्त्वों का
स्थापित
कही
नग्नता
झूठी शिल्पों यक्षणियां
वस्त्र
शिल्पों
है. वह है
का
1837
1925
एज 1884
मेहता ना. चि. हीरालाल / ...
भाग 2
स्पेक्ट / ... भाग 2 जैन तत्त्वज्ञान 369
www.jainelibrary.org