Book Title: Uttar Bharat me Jain Dharm
Author(s): Chimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
Publisher: Sardarmal Munot Kuchaman

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Page 246
________________ पृष्ठ पंकि पशु 169 3 श्राविक 26 92 27 28 लेखे 2 प्रतिनिखित 22 इण्डोसिखिक 24 को 26 गर्दीमल्लो 12 14 170 171 172 173 177 8,12 17,27 25 15 का इसके 178 3 179 175 176 3 यहाँ दामोल्लेल 18 त्य राजों को को के 1 म 1 म प्रालोक 14 6 चंछाभाय 2 मूल 20 युवानव्वांग 10 होना 21 24 को कोई के 1 या 3 पाया को ही 17 ने 182 10 स्त्रोत 19 विद्वानों 1 पहण्ण 9 यादेसास्यस्कंध 12 उत्तरउभयरण 14 दो सूत्र Jain Education International शुद्ध | पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध 1 84 भविका 62 दानोल्लेलॉस 29 को लेस |186 78 साली प्राचीन लिपिक प्रमिललित इण्डोसिपिक के गर्दभिल्लो द्वितीय राजाओं की 187 का ६ को प्रथम प्रथम मत्र्यलोक 20 में प्रयुक्त से 12 ग्रंथ के 17 रष्टि 4 यंत्र तंत्र 12 में 15 विषय 16 चितौनी का 21 चिऊंटी पहा 192 16 जाने चंदाभाय 193 11 सूर्यामदेव होने का कोई को था पाहा (दाल) का से स्तोत्र विज्ञानों पइण्णा या दसासूय स्कंध 19 माधुयों 25 प्रश 189 उत्तरज्भयरण दो चूलिका सूत्र 122233 भूल प्रानच्वांग 194 15 पहनो 195 196 3 17 H4ST S को को... हैं 17 14 कैसी 15 मूल मूल पाठक 7 दिट्ठति 11 17 24 27 शययम्भव ये पवित्र में पक्किम मगधी अर्थ मागधी 197 9 11 11 बहुत्रांश 13 23 सीमा पर को For Private & Personal Use Only [ 5 शुद्ध साधुत्रों की मङ्ग से प्राचीन लिपिक साक्षी के के निष्णांत को भी वे सिद्धांत ग्रंथ से ही लगते है। से ग्रंथ दृष्टि द्वारा यत्र तत्र 备 विजय चेतावनी चिमटी जाने का सूर्यामदेव देशी पयन्नों भ्रूण मूल पाठ दृष्टान्त शयंभव पवित्र मैं पढिक्कम मागधी वर्ष मागधी बहुतांश सीमा पार की www.jainelibrary.org

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