Book Title: Uttar Bharat me Jain Dharm
Author(s): Chimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
Publisher: Sardarmal Munot Kuchaman

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Page 244
________________ 105 106 107 पशुड 2 बल 3 सम्पति 3 कारावाग़ में 14 जाते 19 मुणे 123 20 उस पर्व 28 दुर्भाग्यपूर्ण 30 31 2 बुद्ध... शत्रु 16 क 4 मूल 6 मास 109 26 मीर्फ 110 26 112 6 16 भरकस 32 श्रर्माचार्य 2 113 35 114 16 115 116 17 शास्त्र: मतभेद 1172 सनय 24 पुण्यमित्र 19 23 4 स्थापन प्राचार्य 13 होता 1 म प्रथन वन्दराज नंदराज इसका समर्थ इसका समर्थन इसका समर्थन मंदा 150 1 बिंदुसार अपने दरिणरण जोखम के मुनि की श्रमरणों के 13 अशोक 125 7 जासने 126 8 विक्रय शुद्ध Jain Education International काल सम्पति कारावास में उसने चाहते शास्त्रज्ञोमतभेद मेरी 130 भरसक धर्माचार्यो (बुद्ध... शत्रु ) उपर्युक्त भूल भास सिर्फ दो 22 खुदी उसके पूर्व 25 प्रणों दुर्भाग्यपूर्ण 131 12 स्त्रियों 15 द्वितीय मढा 155 पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध बिन्दुसार समय पुष्यमित्र स्थापित 127 प्राचार्य थे होता है दक्षिण 129 9 जैन धर्म का 23. प्रार्थ 14 27 1138 139 19 132 20 133 18 135 27 कष्ठ 137 15 17 34 10 15 18 140 7,8 11 1 भी निम्न श्राज स्थापित 8 भाग्य 13 20 30 141 17 कुरती रानीनूर से खुदी हुयी स्वर्गी पंडितजी की ते था । ही पंक्ति द्वेश का जातियों या 1 म राज या पनरावर्तन इतिहासज्ञों राज्य का प्रारम्भ प्रथप पंच परमेष्ठित विरुद्ध प्राररियागं विधर्व जोखम के कहा मुनि के 27 श्रमणों को 142 10 अशोक ने 14 खारडेल जानने 143 26 उद्धश विजय 144 6 इस घोर For Private & Personal Use Only शुद्ध जैन धर्म के आषं प्राज भी स्थापत्य खुदा फरण शासन देवियां अद्वितीय कुर्सी रानीनूर ख़ुदा हुआ काष्ठ स्वर्गीय पण्डितजी का तो था ही । पंक्ति का भाष्य सिक्कों था या प्रथम राजा यह पुनरावर्तन इतिहासज्ञ राज्य के आठवें वर्ष से याने लगभग प्रथम पंच परमेष्टि विरुद रामो पायरिया विदर्भ खारवेल - उद्देश्य इस पोर www.jainelibrary.org

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