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पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध
4 जैसिंह
2
1
5 12
7
7
10 प्रकारथ
10 बेलों
13
10 10
12 17
इत
13 13 13 मबोर्य
0
15
:: शुद्धि पत्रक :-:
[टीप० मुद्रण अशुद्धियों को प्रदर्शनी रूप इस पुस्तक की उन साधारण अशुद्धियों का शुद्धिकरणयहाँ नहीं किया गया है जिन्हें कि सामान्य पाठक गण स्वयं के विवेक से ही सही पढ लेंगे । ]
23
31
16 13
17 15
24
"
धम
जन धर्म
को
14 वस्तुओं
15 गजपर
कर्मवेश
232
अवस्थित
मानी जाना
17 हैं कि
2012 की प्रजा भोर
23 12 ऐसी
राजौ
3 करने में
12 या
12 शांति 2613 क्षत्रियों के 2 18 का वेलक 30 6 मोता
शुद्ध
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जैचंद
बन रिलोजन माग जैन रिलीजन भाग 2
सुधर्मी
सुधर्मा
अमप्राय
अभिप्राय
""
धर्म
जैन धर्म
की
अकार्य
खोजों
अव्यवस्थित
माने जाने
ज्ञात
मचौर्य
वस्तुओं का
गणधर
कमवेश
言
पर पहिले
ऐसे
राजाओं
करने में कि
था जाति
क्षत्रियों के प्रधानत्व
ज्ञाता
!
पृष्ठ पंक्ति प्रशुद्ध
विद्वानों
विद्वानों ने
वर्धमाग
प्रतिभा
32 7
34 1
6
35
36
37
39
40
1
2
कि
7 कोई नहीं
2 प्रो
6. को
442
15 स्वम्
वास्त
वाचना
जब
अनतदर्शन प्रनत 30... में
9 8
43
16 धीरा
45 3 प्रगन्म
46
23
प्रतिकूल भुकाना
50
9
सामयिक
14 करेभियंते
23 सवभाव
51 27 पदार्थ
52 20 सोविक
53 16 प्रतिकेक
54 4 तत्वेशा
SS 9 प्रतिबन्दी
12 प्रतिद्वन्द्रवता 19 ने सद्दालपुत्र
में
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शुद्ध
विद्वानों ने विद्वान
व मान
प्रतिमा
कि जिसकी
कोई नई नहीं
हो
के
स्वयं
वारेन
वाचना
भव
अनन्तदर्शन अनन्त वे दर्शन कहते हैं जैसे मैं
धीमा
प्रगल्भ
प्रति दुकाना
सामायिक
करेमिमंते
समभाव
पदार्थ में
से मायिक
प्रतिरेक
तत्त्वशों
प्रतिद्वन्द्वी
प्रतिदन्ता
में सदासपुत्र ने
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