Book Title: Uttar Bharat me Jain Dharm
Author(s): Chimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
Publisher: Sardarmal Munot Kuchaman

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Page 218
________________ [ 207 व्यवहार किए बिना नहीं रह सका था और फा बरटोलोम्भिग्रो के प्रशंसकों ने उसकी सर्वोत्कृष्ट और अतीव आकर्षक सन्त सेबास्टियन की प्रतिकृति को गिरजाघर की भींत पर से सखेद उतार दिया था।" भारतीय कला विषयक इस सामान्य चर्चा के पश्चात् अब हम जैनों के विशिष्ट कलावशेषों का विचार करें। इसमें उड़ीसा की गुफाएं हमारा ध्यान सर्व प्रथम आकर्षित करती हैं कि जो भारतीय गुफाओं में अति रसप्रद्ध और साथ ही विलक्षण हैं । वे गुफाएं अधिकांश जैन ही हैं, इसमें शंका ही नहीं की जा सकती है। “कलिंगदेश में जैनधर्म' शीर्षक अध्याय में इन गुफाओं में पाई जाने वाली तीर्थंकरों की प्रतिमानों और उसमें भी पार्श्व की अनेक मूर्तियों एवं उसके सर्प-फरण लांछन की अनेक प्राकृतियों को लेकर उनको दिए प्रमुख स्थान प्रादि का निर्देश कर चुके हैं । गुफाओं के निरीक्षण में कोई ऐसे अवशेष उपलब्ध नहीं होते हैं कि जो स्पष्टतया बौद्ध कहे जा सकते हैं । दागोबा, बुद्ध या बोधीसत्व, बौद्ध दन्तकथानों में स्पष्टतया खोज निकाले जा सकने वाले दृश्य, कोई भी वहाँ नहीं हैं । उनमुक्त या नोकदार त्रिशूल, स्तूप, स्वस्तिक, बन्ध कटहरे बाड़ लगे वृक्ष, चक्र, श्री देवी वहाँ अवश्य ही पाए जाते हैं, परन्तु ये प्रतीक तो जैनों में भी इतने ही प्रचलित हैं जितने कि अन्य धर्मों में। फिर इस तथ्य को सभी मान्य विद्वानों के सामान्य रूप से स्वीकार कर लिया है। पुरातत्वज्ञों और शिल्पविशारदों जैसे कि प्रो 'भाले, मन मोहन चक्रवर्ती, ब्लाक, फरग्यूसन, स्मिथ,' कुमारास्वामी, आदि आदि ने। इस प्रकार प्राज वर्तमान प्राचीनतम मूर्तिशिल्प के नमूने बताते हैं कि अन्य धर्मों की मांति ही, जनों ने भी अपने साधुओं के निवास के लिए गुफाए या भिक्षु-गृह खुदवाए थे । परन्तु उनके धर्म की व्यवहारिक आवश्यकताएँ पूरी करने जितनी ही उनके निर्माण की शैली पर प्रभाव अवश्य ही पड़ा था। यह एक सामान्य नियम था कि जैन मुनि बड़ी संख्या में एक साथ नहीं रहते थे और साथ ही उनके धर्म की प्रकृति के कारण भी उन्हें बौद्ध चैत्यों के से बड़े बड़े विहारों की आवश्यकता नहीं होती थी। जैसा कि पहले ही हम देख आए हैं, जैन सम्प्रदाय के प्राचीनतम और अधिकतम इस प्रकार की प्राचीन गुफाएं उदयगिरि नाम की पूर्व की ओर की पहाड़ी में हैं । आधुनिक गुफाएं पश्चिमी अंश में हैं जो कि खण्डगिरि नाम से प्रख्यात है । 'उनके दिखाव की भव्यता, उनके शिल्प और स्थापित की बारीकियों की लाक्षणिकता उनकी प्राचीनता से मिल कर उन्हें सूक्ष्म सर्वेक्षण के परम योग्यतम बना देती हैं । 1. मोलोमन, दी चार्म आफ इण्डिय आर्ट, पृ. 86-87 । 2. देखो चक्रवर्ती, मनमोहन, वही, पृ. 5%; फरग्यूसन, वही, पृ. 1।। 3. यो 'भाले', बंगाल डिस्ट्रिक्ट गजेटियर, पुरी. पृ. 2661 4. अपनी यात्राओं में इन गुफामों का सूक्ष्म निरीक्षण करने के पश्चात् मैं इस परिणाम पर पहुँचा हूँ कि सभी गुफाए, जहाँ तक कि वर्तमान सामग्री कहती है, जैनों की कही जानी चाहिए न कि बौद्धों की। चक्रवर्ती, मनमोहन, वही और वही स्थान । 5. गुफाओं बौद्धधर्म का कुछ भी नहीं है, परन्तु दृश्यतः सब ही जैनों की हैं, यह तथ्य प्रायः सभी अधिकारी विद्वानों द्वारा, मैं समझता हूं कि सामान्यरूप में...स्वीकृत है । देखो वही, पृ. 20 । 6. बहुत थोड़े ही दिनों पहले तक, फिर भी, भ्रम से बौद्ध मानी जाती रही हैं, हालांकि वे ऐसी स्पष्टतः कभी भी नहीं थी। फरग्यूसन, वही, भाग 1, पृ. 1771 7. देखो स्मिथ, वही, पृ. 84 । 8. देखो कुमारास्वामी, हिस्ट्री आफ इण्डियन एण्ड इण्डोनेसियन आर्ट पृ. 37। 9. फरग्यूसन. वही. भाग 2, पृ. 9। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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