Book Title: Uttar Bharat me Jain Dharm
Author(s): Chimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
Publisher: Sardarmal Munot Kuchaman

Previous | Next

Page 225
________________ 214 सर दोनों ओर प्राकृतियाँ हैं एवम् नीचे के कमल-पाद के सहारे दो शंख भी खड़े किए हुए हैं।" कृति के दाई ओर के पूजकों के समूह में चार स्त्रियों हाथों में पुष्पहार लिये दिखाई गई हैं जिससे वे लेल निर्दिष्ट की पूजा करने की प्रत्यक्षतः इच्छुक प्रतीत होती हैं। पहली तीन प्राकृतियों में से प्रत्येक दाएं हाथ में लम्बी डंडीवाला कमल है, और चौधी जो कि सब से छोटी एवम् स्पष्ट हो न्यूनावस्था की लगती है, भक्तिभाव से हाथ जोड़े हुए खड़ी है। वह शिला के एक सिरे पर बैठे कठोर घसीरियाई सिंह से कुछ माच्छादित है डालर के अनुसार इन स्त्रियों की मुखाकृतियाँ चित्र सी लगती हैं, और उनका वेश, जो कुछ अद्भुत सा है, समस्त शरीर को पैरों तक ढकनेवाला एक ही वस्त्र का बना हुआ है और वह कमर में लपेटा हुग्रा है । शिला के खण्डित अंश के विषय में कुछ कठिनाई उपस्थित हो जाती है। धर्म चक्र के दाई ओर की पुरुषाकृति, डा. व्हूलर के अनुसार, नग्न साधू की है जिसके दाएं हाथ पर, सदा की भांति ही, एक वस्तु लटक रहा है। सम्भवतया लेख निर्दिष्ट महंतु यही है " यह कहना कठिन है कि यह आकृति किसी नम्न साधू की ही है। , स्मिथ के अनुसार शिला के दूसरे छोर पर खड़े चार पुरुषों में की ही यह एक प्राकृति है। " इस लेखक का मत यह है कि स्मिथ का कथन स्वीकार करना अधिक उपयुक्त है क्योंकि तब यह समूचा ही शिल्प उस पर उत्कीर्ण लेख के बहंद की पूजा की तैयारी करते हुए स्त्री और पुरुष धावक-धाविकाओं को प्रदर्शित करनेवाला समझा जा सकता है । मथुरा शिल्प के इस नमूने का महत्व इस बात में है कि यह देव-निर्मित बोद्ध स्तूप से सम्बन्धित है। 'देवनिर्मित' शब्द के महत्व का विचार तो हम पहले ही कर चुके हैं। वह ई. पूर्व अनेक सदियों पहले निर्मित हुआ होगा क्योंकि यदि वह उसी काल में बनाया गया होता जबकि मथुरा के जैनी अपने दानों का लेख सावधानी मे रखते थे, तो इसके निर्माता का नाम भी उन्हें अवश्य ही ज्ञात होता । इसकी जैन दन्तकथा, जिसको स्मिथ ने उदधृत किया है, इस प्रकार है:- यह स्तूप मूलतः सुवरां निर्मित था और उस पर रुन भी जड़े थे। वह सातवें जिनवाने तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के मान में धर्मरुची और धर्मघोष नाम के दो साधुओं की प्रार्थना पर देवी कुबेरा ने बनाया था। तेईसवें जिन श्री पार्श्वनाथ के समय में सुवर्णमय स्तूप को ईंटों के स्तूप से लिखा गया और बाहर में एक पाषाण मन्दिर बना दिया गया। मथुरा शिल्प के इन कतिपय नमूनों के अतिरिक्त हम एक तोरण का भी वर्णन करना चाहेंगे कि जिसमें मानवों और देवों द्वारा पवित्र पदार्थो एवम् स्थानों के प्रति पूज्य भाव प्रदर्शन किया गया है । इन तोरणों का कलाकार किसी विशिष्ट दन्तकथा अथवा शास्त्र का चित्रण करना नहीं चाहता है । वह तो इतना भर दिखाना चाहता है कि देव और मानव तीर्थकरों उनके स्तूपों और मन्दिरों का अभिवादन करने को कितने अधिक उत्सुक हैं। यही कारण है कि इस तोरण के दृश्य में एक या अनेक जिन मन्दिरों की पूजा का और इसी लक्ष्य से की यात्राों के संघों का प्रदर्शन किया गया है । शिल्प के इन उदाहरणों में एक ऐसा भी है जो दश्यतः पुरातत्विक प्रति महत्व का है। यह शिल्प एक तोरण का है कि जिसमें दो सुपरग (अर्ध-मनुष्य- अर्ध- पक्षी) और पाँच किन्नरों द्वारा स्तूप पूजा का दृष्य अंकित है । पाँचों किन्नराकृतियों के सिर पर पगड़ी है जैसी कि बौद्ध शिल्पे में ग्रभिजात्यवर्ग के बताई गई है । 'कुछ इसी जैसा दश्य डा. स्कूलर कहता है कि जहाँ सुपर स्तूप की " 1. वही, पृ. 321 बौद्ध शिल्प के उदाहरण के लिए देखो फरम्युसन ट्री एण्ड सपेंट वशिप, प्लेट 29 चित्र 2 । 2. व्हूलर, वही और वही स्थान । 3. वही 4. स्मिथ. वही, पृ. 12 5. वही, पृ. 151 Jain Education International मनुष्यों के सिर पर बँधी पूजा कर रहे हैं. साँची के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248