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हो कर हूणां के टोले के टोले उत्तर-भरतवर्ष में प्रलय की भांति सब ओर फैल गए थे। इस तोरराय को हण सरदार तोरमारण मान लेने में कोई भी ऐतिहासिक मूल नहीं है क्योंकि समस्त भारतीय इतिहास में केवल एक ही पृथ्वीभोक्ता तोरमारण है । वह अपने समय का एक अति प्रख्यात व्यक्ति ही था क्योंकि, जैसा कि हम अभी कह चुके हैं, वही हूणों के आक्रमण और परिणामत: गुप्त साम्राज्य के विघटन का प्रधान नायक था । मध्य एशिया को त्याग कर वह अपने अनुयायियों सहित भारतवर्ष में घुस आया और पंजाब एवं दिल्ली को विजय कर वह मध्य-भारत के मालवा देश तक भीतर में पहुंच गया था। विसेंट स्मिथ कहता है कि "भारतवर्ष के इस आक्रमण का कि जो कितने ही वर्षों तक निःसंदेह ही चलता रहा था, नेता तोरमाए नाम का सरदार था कि जिसने मध्यभारत के मालवा प्रदेश तक अपना अधिकार ई. सन् 500 के पहले ही जमा लिया था ऐसा कहा जाता है। उसने अपने लिए 'महाराजों का राजा' का भारतीय विरुद धारण किया था; और मानुगुप्त एवम् वल्लभी का राजा व अन्य अनेक राजों को उसने अपने करद राज्य बना लिये होंगे।
स्वभावतः मध्यएशिया के आर्यों के नेता, इस हरणाधिपति, ने भारतवर्ष की राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक स्थितियों में भारी क्रांति ही ला दी होगी। उसके प्राधिपत्य का समय नि:संदेह अल्पकालीन था, परन्तु जिस समय उसकी मृत्यु हुई -ई. छठी सदी के प्रथम दशक में उसका जमाया हुआ भारतीय साम्राज्य इतना शक्तिशाली था कि वह उसके पुत्र एवम् उत्तराधिकारी मिहिरकुल को मिल सका। परन्तु यह आश्चर्य की बात है कि पुरातत्वज्ञों को उसकी राजधानी कहां थी इसका ग्रसंदिग्ध रूप से पता अभी तक भी नहीं लग पाया है । अनेक आधारों से हम इतना तो जानते हैं कि पंजाब का, शाकल, आधुनिक सियालकोट, उसके उत्तराधिकारी मिहिरकुल की राजधानी थी। फिर भी कुवलयमाला के कथानुसार, तोरमारण की राजधानी चन्द्रभागा माज की चिनाव, नदी के तट पर की पव्वइया नगरी थी।
इस पव्व इया को जिसका कि संस्कृत रूपान्तर पर्वतिका या पार्वती है, उत्तरी-भारत में निश्चित करना कठिन है। युयानव्वांग के 'भारतवर्ष का पर्यटन याने ट्रेवल्स इन इण्डिया' ग्रन्थ में हमें मौ-लो-सन-पू-लू याने मुलतान से लगभग 700 ली उत्तर-पूर्व के पो-फा-टो देश में उसके जाने का पता चलता है । 'इस लेखांश का पो-फा-टो,' वाटर्स कहता है कि 'शब्द सम्भवतया पो-ला-फो-टा याने पर्वत का ही पर्याय मालम होता है। इससे क्या हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि चीनी पर्यटक का पर्वत नगर ही तोरमाण की राजधानी पब्वइया नगरी था ? विद्वान इस सम्बन्ध में सब एक मत नहीं हैं। इसलिए हम इतना ही कह सकते हैं कि, जैनों के
1. स्मिथ, वही, पृ. 335 । देखो वान्]ट, वही, पृ. 491 2. देखो स्मिथ, वही और वही स्थान । अोझा, वही, पृ. 128। 3. देखो स्मिथ वही और वही स्थान; ग्रोझा, वही, पृ. 129; वान्र्येट, वही, पृ. 50। 4. देखो वाटर्स, युनानसांग्स ट्रैवल्स इन इण्डिया, भाग 2, पृ. 255; बील, सी-यू-की, माग 2, पृ. 275 । 5. वाटर्स, वही और वही स्थान । देखो बील; वही और वही स्थान । 6. विसेंट रिमथ के अनुसार पो-फा-टो (पर्वत) काश्मीर राज्य जैसा कि वह आज संगठित है, के दक्षिण स्थित
(जम्मू) जमू का राज्य होना चाहिए । देखो वाटर्स, वही, पृ. 342 । कनिंघम शोरकोट को ही पो-फा-टो कहता है, यद्यपि वह यह भी मानता है कि पर्यटक निर्दिष्ट स्थिति तो चेनाब पर के अंग के स्थान से मिलती है। कनिबम, एंजेंट ज्योग्राफी आफ इण्डिया, पृ. 233-234 । डा. फ्लीट के अनुसार, पो-फा-टो प्राचीन नगर हड़प्पा के सिवा दूसरा कोई हो ही नहीं सकता है। फलीट, राएसों पत्रिका, 1907, पृ. 650 ।
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