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भवन और एक सलंग प्रौसारी या वरण्डा है। इसमें दस तीर्थंकरों की लगभग एक फुट ऊँची साधारण उभरी आकृतियां पादपीठ में शासन देवी या देव की प्राकृतियां सहित हैं। पार्श्वनाथ जो कि उनके नागफणी छत्र लांछन के कारण सहज ही पहचान में आ जाते हैं, अधिकतम पूज्य हैं क्योंकि उनकी प्राकृति दो बार खोदी हुई है।
इसके अतिरिक्त यह गुफा उसके दो शिलालेखों के कारण भी प्रसिद्ध और महत्व की है । इनमें से एक नो "महामहिम उद्योतकेसरीदेव के प्रगतिमान और विजयी राज्यकाल के 18वें वर्ष का है। परन्तु दोनों ही में' आर्य संघ', ग्रह कुल, देशीगण के प्राचार्य प्रख्यात कुलचन्द्र के शिष्य जैन श्रमण शुभचन्द्र "का उल्लेख है । दोनों शिलालेख एक ही तिथि के याने लगभग 10 वीं सदी ईसवीं के हों ऐसा लगता है।"
इस गुफा से प्रागे बारभुजी अथवा बारह हाथ वाली गुफा है। इसको यह नाम इमलिए मिला कि इसकी प्रोसारी याने वरण्डा की वाम भींत पर बारहभुजा वाली देवी की आकृति खुदी है। नवमुनि गुफा की ही भांति यहां भी साधारण उभरी हुई शासन देव-देवी सहिन जैन तीर्थंकरों की पद्मासन में बैठी प्राकृतियां हैं । पीठ की भीत पर पार्श्वनाथ की खड़ी प्राकृति सतफो नागछत्र सहित परन्तु देवी प्राकृति रहित, है। तीर्थंकर और उनकी स्त्रियां लांछनों सहित यहां बताई गई हैं। ये सब एक ही मापकी याने 8 से 9।। इंच ऊंची हैं । परन्तु पार्श्व की मूर्ति 2 फुट 71 इंच ऊंची है जिससे यह मालूम होता है कि उन्हें यह विशेष मान दिया गया था।
इसी के पड़ोस में दक्षिण और त्रिशूल गुहा है । इसे यह नाम इसलिए प्राप्त हुप्रा कि इसकी प्रोसारी की भीत पर सामान्य कोरणी के भीतरी भाग की बैठक अद्वितीय है। इन बैठकों के ऊपर पार्श्व सहित चौबीस तीर्थंकरों की आकृतियां खुदी हुई हैं । पार्श्व की आकृति पर सप्तफणी नाग छत्र है और अन्तिम प्राकृति महावीर की है । इस मूर्ति समूह में भी पार्श्व की प्राकृति महावीर के पूर्व ही तेईसवें तीर्थंकर की मांति नहीं रखी जा कर, पीठ की भींत पर केन्द्र में खोदी गई है और इस प्रकार उसे विशेष महत्व दे दिया गया है। पन्द्रहवें तीर्थंकर की प्राकृति का नीचे का भाग प्रांगन से उठते हुए बैठक या कुरती में ढका गया है जिस पर कि घिए-पत्थर (सोपस्टोन) पर सुन्दर उत्कीणित तीन आदिनाथ की मूर्तियां हैं। इस समूह की मूर्तियों की सामान्य रचना पास की गुहा की मूर्ति-रचना से कुछ सूक्ष्म और अच्छी है।
नवमुनि गुहा की ही तिथि का एक शिलालेख लालतेन्द्र-केसरी या सिंहद्वार गुहा में उद्योत केसरी का ही है । जिला विवरणिका के अनुसार यह दु-मंजिली गुहा राजा लालतेन्दु-केसरी के नाम पर बनी है और पहली मंजिल के भवनों में जैन तीर्थंकरों की कुछ आकृतियां उत्कीरिणत हैं। इनमें भी पार्श्वनाथ सब से प्रमुख है।' यह गुहा की पीठ की भींत पर उसकी तल भूमि से 30 या 40 फुट की ऊंचाई और दिगम्बर सम्प्रदाय की मूर्तियों के समूह के ऊपर खुदी है।"
1. एपी. इण्डि., पुस्त. 13, पृ. 166 1 2. बंगाल डिस्ट्रिक्ट गजैटियर, पुरी, पृ. 26 3 । 3. एपी. इण्डि., पुस्त. 13, पृ. 166 । 4. गंगूली, वही, पृ. 60 । 5. बंगाल डिस्ट्रिट गजैटियर, पुरी, प. 262। 6. वही। 7. वही, देखो चक्रवर्ती, मनमोहन, वही, प. 19 । 8. कदाचित ऐसा हो कि खारवेल के समय में महान् मतभेद कि जिपने बाद में जैनों को दिगम्बर और श्वेताम्बर ऐसे दो सम्प्रदायों में विभक्त कर दिया, म्पष्ट रूप से प्रकाश में नहीं आया था। परन्तु जैसा कि हम पहले ही देख पाए हैं, बाद के इतिहास में दिगम्बर दक्षिण में ग्रोमुख हो गए थे। इलेरा, बदामी और ऐसे ही अन्य स्थानों की जैन गुफाओं से यह स्पष्ट है।
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