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गुफा में बो-वृक्ष, बौद्ध त्रिशूल, उत्सर्गित स्तूप, विशिष्ट स्वस्तिक चिन्ह आदि आदि बौद्ध प्रतीक बहुत ही स्पष्ट दील पड़ते हैं।'
यह प्रभाव ई. पूर्व 5वीं सदी से लेकर ई पश्चात् 5वीं या 6ठी सदी तक बराबर देखा जाता है। इसका समर्थन इस तथ्य से भी होता है कि दोनों खण्डगिरी धौर उदयगिरि पहाड़ियां जो कि खण्डगिरि नाम से हो प्रसिद्ध हैं, गुफाओं या कोटड़ियों से परिपूर्ण हैं जिनमें से 44 उदयगिरि में 19 खण्डगिरि में और 3 निलगिरि में हैं। उनकी संख्या, ग्रायु और तक्षशिल्प उन्हें पूर्वी भारत के प्रमुख दर्शनीय स्थान बना देते हैं । प्राचीन काल में इनमें बौद्ध और जैन भिक्षु या भ्रमण रहते थे और उनमें से कई प्रत्नलिपिविद्या लक्षणों से ई. पूर्व दूसरी या तीसरी सदी की खोदी हुई लगती है। जैसा कि श्री गंगूली कहते हैं, 'हाथीगुफा के लेख के काल के पूर्व याने ई. पूर्व चौथी या पांचवीं सदी में इन गुफाओंों में से कुछ को अस्तित्व में श्राई कहने में हम सत्य से अधिक दूर नहीं रहेंगे क्योंकि जिस स्थान में ये खोदी गई थी वह सम धार्मिकों की दृष्टि में कुछ पहले से पवित्र माना जाने लग गया होगा । *
इन गुफाओं के निर्माण की तिथि निश्चित रूप से निर्णय करना लगभग असम्भव है और इनमें बौद्ध और जैन प्रभावों के संमिश्रण हो जाने से यह काम और भी कठिन हो गया है। कोटरियों की भीतों पर सामान्य उमसी बौद्ध दन्तकथाएं एवम् जैन तीर्थकरों की प्राकृतियां खुदी दीख पड़ती हैं। खण्डगिरि की जैन गुफा में भव्य स्तम्भ हैं । लगभग सभी गुफाओं की विशिष्टता यह है कि उनके सामने के वरण्डा याने प्रोसारी के तीनों ओर एक से डेढ़ फुट चौड़ी चबूतरी बनी है बरण्डा की दो मीतें शीर्ष में इस प्रकार खोखली कर दी गई हैं कि वे अलमारी मी दीखती हैं। जैन या बौद्ध भिक्षु इनकों अपने जीवनोपयोगी जो भी थोड़े से उपकरण उनके पास हों, रखने के उपयोग में लेते होंगे। "उत्तर भारत की जैन ललित कला 'शीर्षक अध्याय में इसका कला की दृष्टि से आगे विचार किया जाएगा। अभी तो श्री गंगुली की इनकी टीका यहाँ उद्धृत कर देते है कि ये गुफाएं देखने में सादी होते हुए भी भव्य हैं और भूतकाल के इनके रहवासियों के जीवन के ही अनुरूप है।"
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लण्डगिरि गुफाओं में सतचर या सतबद्ध नवमुनि और अनन्त ये तीन गुफाएं अति महत्व की हैं। इनमें से पहले दो पर स्पष्ट जैन प्रभाव हैं और तीसरी पर बौद्ध प्रभाव" क्योंकि इसकी पीठ की भींत पर स्वास्तिक और तीखा त्रिशूल खुदी हुआ हैं । यद्यपि पहले स्वस्तिक के नीचे एक छोटी खड़ी मूर्ति है जो कि अब बहुत घिसी हुई है. परन्तु जिला विवरणिका के अनुसार, वह सम्भवतया जैनों के तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की है।" फिर इस गुफा का चौमींता उत्तरी अंश के ऊंचे भाग को समतल कर के बनाया हुआ है और इसमें जैन तीर्थंकरों और देवताओं की मूर्तियां हैं कोरणी की प्रत्येक महराव सर्प की दो प्ररणों में है जो कि पार्श्वनाथ का लांछन है । महरावों और पक्ष की भीतों के बीच का स्थान हाथों में अर्ध्य लिये जाते हुए विद्याधरों से भर दिया गया है। सतघर गुफा लांछन सहित तीर्थंकरों की प्राकृतियों के लिए जो कि उसके दक्षिणी भाग के भीतरी खण्ड की भीतों पर खुदी है. प्रसिद्ध है।" पक्षान्तर में नवमुनि प्रत् नौ सन्तों की गुफा एक साधारण गुफा है जिनमें दो
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1. वही, पृ. 40,57
3. गंगुली, वही, पृ. 22
4. वही, पृ. 34
5. देखो चक्रवर्ती, मनमोहन, नोट्स बान दी रिमेन्स इन घौली एण्ड इदवी केज ग्राफ उदयगिरी एण्ड खण्डगिरि पृ. 8 ।
6. बंगाल डिस्ट्रिक्ट गजेटीयर, पुरी, पृ. 263 ।
2. बंगाल डिस्ट्रिक्ट गजेटियर, पुरी, पृ. 251
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7. अपने शासन देव देवियों सहित तीर्थकरों की ही ये सब प्राकृतियां हैं और ये बौद्ध की प्राकृति से मिलती-जुलती नहीं है जैसा कि प्राकियालोजिकल सर्वे रिपोर्ट ( 13, पृ. 81) के सम्पादक का कहना है।
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