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ही है। यही हमें इस बात का पता लगता है कि खारवेल चेदिवंश का था और उस वंश के राजा 'अइर' विरुद धारण करने वाले थे । जायसवाल कहते हैं कि 'इरा' या 'इला' का उत्तराधिकारी ही 'अइरा' होती है और इसलिए इसे चेदिवंश के वंशज का द्योतक मानना चाहिए। वे इसे 'पुराणों में वर्णित ऐला, से मिलाते हैं कि जो प्रमुख राजवंशों में से एक था और पुराणों के अनुसार चेदि इसी वंश के थे।
दूसरी पंक्ति में खारवेल के पन्द्रह वर्ष के युवराज पद का वर्णन है जब कि उसने भिन्न भिन्न विद्याएं सीखी थी। "राजा वेन की भांति ही महान् विजय प्राप्त करते हुए" उसने युवराज रूप में अनेक वर्षों तक राज्य किया।
राजा वेन वैदिक व्यक्ति था। मनु' के अनुसार राजा वेन के अधीन यह सारी ही पृथ्वी थी । श्री जयसवाल कहते हैं कि “पद्मपुराण के वर्णनानुसार वेन ने अपना राज्य अच्छी रीति से प्रारम्भ किया परन्तु पीछे जाकर वह जैन हो गया। हाथीगुफा के लेखानुसार हमें पद्मपुराण की इस बात का परोक्ष समर्थन हो जाता है और वह भी यहां तक कि वेन जिसकी ब्राह्मण दन्तकथा में अन्त तक अच्छी ख्याति नहीं रही थी, जैन दंतकथा में आदर्श राजा की ख्याति भोगता है। यदि जैनों में उस समय भी जब कि यह शिलालेख उत्कीरिणत किया गया, वेन अपने राज्य काल के अन्तिम दिनों में बुरा राजा माना जाता होता तो खारवेल की स्तुति में उससे तुलना कभी भी नहीं की जा सकती थी। यह द्रष्टव्य है कि ब्राह्मणों ने वेन में एक मात्र दोष यही पाया कि वह जैन हो गया था याने वह जाति भेद नहीं मानता था। ऐसा लगता है कि वेन को बदनाम करने की दन्तकथा बाद की एवम् जैन-परवर्ती काल की है।'
तीसरी पंक्ति में, जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है, हम पढ़ते है कि 24 वर्षे पूर्ण कर खारवेल ने कलिंगवंश के तीसरे राजा के रूप में 'महाराजा भिषेचनम्' विरुद्ध प्राप्त किया और उसने कलिंग की राजधानी में खिबीर ऋषि सागर की पाल का जीर्णोद्धार कराया और घाट बंधवाया था।
चौथी पंक्ति से खारवेल के राजकीय जीवन का वर्णन प्रारम्भ होता है । पंक्ति के प्रारम्भ में ही कहा गया है कि खारवेल ने 35 लाख की बहप्रस जनता को प्रसन्न करने का प्रयत्न किया था।10 इतरी भारी जन सख्या से आश्चर्यान्वित होने जैसी कोई बात नहीं है । अशोक के तेरहवें पर्वतावालेख में कहा गया है कि उसकी सेना के विरुद्ध कलिंग ने 1,50,000 युद्ध बन्दी दिए, 1,00,000 कत्ल कर दिए गए और 'इनसे कितने ही गुणे मर गए थे' 111 हताहतों और बन्दियों दोनों की संख्या ही ढाई लाख की हो जाती है । शानहार्ट की गणनानुसार जन संख्या को प्रत्येक पन्द्रहवों व्यक्ति ने परराज्य-अाक्रमण के समय यदि अस्त्र ग्रहण किया हो तो अशोक के समय में ही कलिंग की बस्ती लगभग 38 लाख को हो सकती है । इसके सौ वर्ष पश्चात् अर्थात् खारवेल के राज्य काल में, मौर्य-विजय और मौर्य राज्य के कारण वह जनसंख्या घटकर 35 लाख रह जाना बहुत ही सम्भव है।
1. णमो अरिहंतारणं णमो सिद्धाणं प्राररियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लेए सव्वसाहणं, ऐसो पंवरणमुक्कारो...
कल्पसूत्र, सूत्त 1। 2. देखो बिउप्रा, पत्रिका, सं] 4, पृ. 397 और सं. 13, पृ. 222 । 3. पार्जीटर, राएसो पत्रिका, 1910, पृ. 11, 26। 4. विउप्रा, पत्रिका सं. 13, प. 223 । 5. देखो वहां, सं. 4, पृ. 397 और स. 13, पृ. 224 1 6. ऋग्वेद, मण्डल 10, ऋचा 123 । 7. मन, अध्याय 9, श्लोक 66-671
8. बिउप्रा पत्रिका सं. 13, पृ. 224, 225 । 9. देखो वही, सं. 4,4. 397-8 और सं. 13, 1.2551 10. देखो वही सं. 4, पृ. 398, सं. 13 पृ. 226 । 11. न्हूलर, एपी. इण्डि., पुस्त. 2, पृ. 4711 12. देखो बिउप्रा पत्रिका सं. 3 पृ. 440 ।
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