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जैन दन्तकथा इस विषय में, संक्षेप में, इस प्रकार है। एक निष्ठ ब्राह्मण चरिणन की पत्नि चणेश्वरी का पुत्र चाणक्य, यह सुनकर कि प्रसिद्ध ब्राह्मणों को नंद उदारता से दक्षिणा देता है, कि दक्षिणा प्राप्ति के लिए पाटलीपुत्र गया। वहां राजदरबार में उसका अपमान किया गया है, उसे ऐसी प्रतीति हुई और तभी से वह अन्तिम नन्द का विरोधी वैरी हो गया। वहां से वह हिमवत्कूट गया और वहां के राजा पर्वत के साथ इस शर्त की मैत्री कि यदि नन्द को पराजित एवम् वश करने में वह उसकी सहायता करेगा तो वह उसको नन्द का प्राधा राज्य दे देगा बस उनने आसपास के प्रदेशों पर अधिकार कर उसके विरूद्ध अभियान प्रारम्भ कर दिया और अन्त में देश का तहस-नहस कर, उन मित्रों ने पाटलीपुत्र पर घेरा डाल दिया और बेरी को समपर्ण होने को बाध्य किया । नन्द ने चाणक्य से दया भिक्षा मांगी, इसलिए उसको जितना भी धन एक रथ में वह ले जा सके उतना ले राज्य छोड़ चले जाने की आज्ञा दे दी गई । नन्द अपनी दो पत्नियों एवं एक पुत्री के साथ कितना ही धन ले रथ में बैठा जब जा रहा था, तो मार्ग में चन्द्रगुप्त मिला जिसे देखते ही नन्द की पुत्री उसके प्रेम में पड़ गई । पिता की सम्मति से उसने स्वयम्बर रीत्यानुसार उसको पति वरण कर लिया। पिता के रथ में से उतर कर जब वह चन्द्रगुप्त के रथ में चढ़ने लगी तब उसके पहिए के नौ पारे टूट गए । इससे चन्द्रगुप्त ने उसे निकाल ही दिया होता, यदि चाणक्य यह कह कर उसे नहीं रोकता कि नया राजवंश नौ पीढ़ी तक फलेगा।
नन्दों के पतन और मौर्यो के उत्थान के विषय में जैन इतना ही कहते हैं । हिमवत्कूट का दुर्भागी राजा पर्वतक अकस्मात मर गया और इस प्रकार नन्द एवम् पर्वतक दोनों ही के राज्य का स्वामी चन्द्रगुप्त ही हो गया। जैसा कि कहा जा चुका है यह घटना महावीर के निर्वाण के 150 वर्ष पश्च
यहां दो प्रश्न उठते हैं। एक तो यह कि जैन एवम् अन्य उल्लेखों के प्र, र नन्दों के पतन में चाणक्य अकेले ही का हाथ हो तो इस चन्द्रगुप्त की कुल परम्परा क्या थी? और दूसरा यह कि मगध साम्राज्य का स्वामी चाणक्य स्वयम् क्यों नहीं बना? इन दो समस्याओं में से चन्द्रगुप्त की कुल परम्परा की समस्या का हल नही किया जा सकता है। जैन दन्तकथा उसे राजा के मयूर-पोषकों के गांव के मुखिया की पुत्री का पुत्र बताती है। स्मिथ कहता है कि चन्द्रगुप्त ने अपनी माता अथवा नानी (माता मही) मुरा के नाम से अपना वंश स्थापित किया होगा।" हिन्दू इन मौर्यों को नन्दों के साथ जोड़ देते हैं। कथासरित्सागर चन्द्रगुप्त को नन्द का
1. गतो मिवत्कुट, पार्वतिको राजा तेन समं मेत्री जाता। -यावश्यकसूत्र पृ 434; हेमचन्द्र, वही, श्लो. 298 ।
परिशिष्टपर्वन के संस्करण में याकोबी इस विषय में एक टिप्पण देता है जो इस प्रकार है। नेपाल राजवंशावली में, बौद्ध पार्वतीय वंशावली के अनुसार, तीसरे वंश का ग्यारवां राजा, किरातों का राजा कोई पर्व था जो प्रत्यक्षतः हमारा पर्वत हो; क्योंकि सातवें राजा के राज्यकाल में याने जितेदास्ती के समय में बुद्ध का नेपाल गमन बताया गया है, और चौदहवें राजा स्थुक के काल में अशोक का वहां जाना कहा है । -याकोबी, परिशिष्टपवन्, पृ. 58 । देखो भगवानलाल इन्द्रजी, ई.एण्टी., पुस्त. 13, पृ. 412 । 2. देखो आवश्यकसूत्र, पृ. 433, 434, 435%; याकोबी, वही, पृ. 55-59 । 3. द्वे अपि राज्ये तस्य जाते। -प्रावश्यकसूत्र, प. 4351 देखो हेमचन्द्र, वही, प्रलो. 338 । 4. "कौटिल्य अर्थशास्त्र, कामन्दक नीतिशास्त्र, पुराण, महावंश और मुद्राराक्षस से हमें मालम होता हैं कि नंदवंश
का उच्छेद चन्द्रगुप्त के माहमात्य कौटिल्य द्वारा ही हया था।" -रायचौधरी, वही और वही स्थान । "कौटिल्य नाम का एक ब्राह्मण उनका उन्मूलन करेगा। 100 वर्ष तक इस पृथ्वी का राज भोग कर, यह राज्य मौर्यो
को चला जाएगा।" -पार्जीटर वही पृ. 69। 5. देखो पावश्यकसूत्र पृ. 433-4 34. हेमचन्द्र, वही, श्लोक 240 । 6. देखो मिथ. वही, पृ. 123 ।
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