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था और सद्भाग्य से थोड़े समय के लिए जैन इतिहास में उसने उतना ही महत्व का कार्य भी किया था। सम्प्रति के बाद मौर्यवंश अधिक दिन टिका नहीं रहा था यह निश्चित है । जो भी राजा उसके बाद हुए होंगे वे निर्बल ही होंगे क्योंकि जैसा हम देख आए हैं और आगे भी देखेंगे. मौर्य सेनापति ने अन्तिम मौर्य राजा को निर्दयता से मार कर मगध का सिंहासन हड़प लिया था ।
फिर भी प्रतिभासम्पन्न मौर्यवंश के पतन के कारणों में उतरना हमारे लिए प्रावश्यक नहीं है। इतना भर कह देना ही पर्याप्त है कि मौर्य अशोक की कलिंग विजय भारत और मगध के इतिहास में एक महान् लाक्षणिक प्रसंग था। इससे मगध साम्राज्य तमिल को छोड़ सारे भारत भर फैल गया था। बिबसार ने विजय कर अंग देश खालसा कर विक्रय यात्रा प्रारम्भ की और उस साम्राज्य का उत्कर्ष काल अब यहां अंत हो गया। एक नए युग को उसने जन्म दिया शांति, सामाजिक उन्नति और धार्मिक प्रचार का एक नया युग यद्यपि प्रारम्भ हुआ, परन्तु राजकीय जीवन की मंदता और कदाचित् सैनिक प्रदक्षता का भी ऐसा युग प्रारम्भ हो गया कि जिसमें मगध साम्राज्य की सारी वीरता या वीर वृत्ति अभ्यास के अभाव के कारण मर गई। दिग्विजय का युग समाप्त हो गया था । धर्म विजय का युग प्रारम्भ हो गया था और इसके फल स्वरूप मगध साम्राज्य पर से मौर्य सार्वभोम सत्ता का लोप और अन्त हुआ ।
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