________________
[ 115
पुत्र कहता है। पहावंश उसका मोरीयवंश बताता है । दिब्यावदान में चन्द्रगुप्त का पुत्र बिंदुसार अपने मूर्धामिषिक्त क्षत्रिय होने का दावा करता है। उसी ग्रन्थ में बिंदुसार का पुत्र अशोक अपने को क्षत्रिय कहता है । महापरिनिव्वाणगुत्त में मोरियों को क्षत्रिय जाति के और पिष्फालीवन का राजवंशी कहा गया है ।
इन मब बातों का विचार करते हए, डा रायचौधरी कहता है कि 'इतना तो निश्चित है ही कि चन्द्रगुप्त क्षत्रिय जाति याने मोरिया (मौर्य) वंश का था। ई. पूर्व छठी सदी में पिप्फलीवन के छोटे से प्रजासत्ताक पर राज्य करने वाले यह मोरिया जाति थी। पूर्व भारत के अन्य राजाओं के साथ वह भी मगध साम्राज्य में मिल गई होगी। अग्रमेस के अयशस्वी राज्य में जब उसकी प्रजा को वह अप्रिय हो गया तो बहुत करके ये मोरिया चन्द्रगुप्त के नेतृत्व में फिर प्रकट हो गए होंगे । तक्षशिला के बाह्मण के पुत्र कौटिल्य या चाणक्य अथवा विष्णुगुप्त की सहायता से उसने दुष्ट नन्द को पदभ्रष्ट कर दिया।
चन्द्रगुप्त की वंश-परम्परा के विषय में इतना ही कहा जा सकता है। अब इसका विचार करें कि चाणक्य ही मगध का राजा क्यों नहीं बना ? इस विषय में डा. रायचौधरी का उपरोक्त वक्तव्य कुछ स्पष्टीकरण अवश्य ही करता है। यह बहुत ही सम्भव दीखता है कि चन्द्रगुप्त स्वयम् ही, जैसा कि ग्रीकी कहते हैं,' महान् भाग्य के प्रमुख चिन्ह देखकर राज्य प्राप्त करने को प्रेरित हया था। जैन इतिहास के अन्य प्राधारों की भांति ही ग्रीक साहित्य भी वास्तविक इतिहास पर कुछ प्रकाश नहीं डालते हैं। चन्द्रगुप्त के विषय में वे इतना ही कहते हैं कि नन्द राजा द्वारा मृत्युदण्ड दिए जाने पर वह वहां से भाग निकला था, जब वह सोया हया था तो उसके शरीर में से निकल रहे पसीने को एक सिंह चाटता रहा था, इस अद्भुत पुरुष को चाणक्य ने राजपिहासन प्राप्त करने को उकमाया था और उसके सामने एक वनगज एकदा नतमस्तक हो गया था। जब ऐसी दन्तकथाएं सालक साक्षीभूत आधार भी चन्द्रगुप्त के विषय में कहें तो यह कोई भी प्राश्चर्य नहीं है कि जैन दन्तकथा इस समस्या की व्याख्या इस प्रकार करे कि 'चाणक्य जब जन्मा था तब उसके मह में सारे ही दांत थे । इस आश्चर्यजनक घटना के फलाफल के विषय में जब साधुनों को पूछा गया तो उनने भविष्यकथन किया कि यह शिशु राजा होगा। परन्तु उसका पिता धार्मिक वृत्ति का था एवम् पूत्र को प्रात्मा की राजपद की भयंकरता से वह बचाना चाहता था। इसलिए उस राजचिन्ह को दूर करने के लिए उसने शिशु के दांत तोड़ दिए । फिर भी मुनियों ने कहा कि अब चाणक्य किसी प्रतिनिधि द्वारा राज चलाएगा। नन्दों की पराजय पश्चात्, यह दन्तकथा कहती हैं कि, नन्द की धन सम्पदा सब चन्द्र गुन्त और पर्वत दोनों ने आपस में बांट ली ।।
1. देखो टानी (पेंजर संस्क.) वही, भाग 1, पृ. 57 । 2. 'मोरियानाम खत्तियानं वंसे प्रादि...'-गीगर, वही, प. 30 । 3. अहं राजा क्षत्रियो मुक्तिा ...'-कव्येल और नील, दिव्यावदान, पृ. 360 । 4. ह्रिस डेविड्स, सेबुई, पुस्त. 11, पृ. 134-1351 5. जनों के अनुसार चाणक्य चणक का निवासी था जो कि गोल्ला जिले में एक गांव है। देखो याकोबी वही,
पृ. 55%; आवश्यकसूत्र, पृ. 433। 6. रायचौधरी. वही, पृ. 165-166। 7. मैक क्रिण्डले, वही, पृ. 320। 8 वही, प. 327-328 । देवो स्मिथ, वही, पृ. 123, टिप्पण 1। 9. चाणक्य की जीवन की इस घटना के विषय में याकोबी इस प्रकार टिप्पण करते हैं : 'यही बात रिचर्ड 3य के विषय में कही जाती है : 'टीथ हैडस्ट दाऊ इन दाई हयेड व्येन दाऊ वास्ट बार्न-याकोबी, वही और वही
स्थान । टू सिग्नीफाई दाऊ कम्येस्ट टू बाइट दी वर्ल्ड ।' 10. देखो प्रावश्यकसूत्र, पृ. 435%; हेमचन्द्र वही. श्लो. 3 7।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org