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कर विजय और उत्कर्ष द्वारा उसका याने मगध का विस्तार इतना बढ़ाया कि वह अशोक के कलिंग विजय कर अपनी तलवार म्यान में रखने पर ही रुका था। महावग्ग में कहा गया है कि बिबसार का साम्राज्य 80,000 नगरों का था जहां के गामिका याने रक्षक लोग एक महासभा में मिला करते थे।""
श्रेणिक के अनुगामी प्रजातशत्रु याने कुलिके के काल में साम्राज्य की मत्तः उन्नति के शिखर पर पहुंच गई थी। उसने कोसल को भी नमा लिया था और कासी को अपने साम्राज्य में मिला लिया था. इतना ही नहीं अपितु जैनों के अनुसार, उसने वैशाली के राज्य को भी मगध के साम्राज्य में जोड़ लिया था। कोमल के साथ हुए युद्ध के फल स्वरूप, अपने पिता की ही भांति अजातशत्रु को भी कोसन की राजकन्या. प्रसेनजित की पुत्री वजिरा से विवाह हो गया था और उसके दहेज में कासी जिले का शेष भाग भी मिल गया था। इस प्रकार उसने अपने पड़ोसी कोसल राज्य में सम्भवतया वास्तविक प्रभावकता प्राप्त कर ली थी। चूंकि स्वतन्त्र सत्ता से रूप में इस कोसल का परवर्ती काल में वर्णन नहीं मिलता है इससे यह निश्वयसा ही है कि वह मगध साम्राज्य का ही एक संपूरक बन गया होगा ।" कुछ भी हो, वैशाली और मनकी यदि उसके मित्र राज्यों पर की कुशिक की विजयों कि जिसमें कासी कोसल भी छा गए थे. मगध साम्राज्य के विस्तार की दृष्टि से पूर्ण निर्णयात्मक और अत्यन्त फलप्रद रही थी।
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बेटी रूप स्वाभाविक सीमा तक बीच का समग्र देश कमोवेश अंश
डॉ. स्मिथ कहता है कि "यह माना जा सकता है कि विजेता ने पर्वत की अपना हाथ लम्बा फैला दिया होगा। और फलस्वरूप गंगा और हिमालय के में मगध की सीधी सत्ता के नीचे ग्रा गया होगा ।"" पहले से ही उनको मगध साम्राज्य के विस्तार में रुकावट डालने वाले लिच्छवी प्रतीत हुए होंगे और इसी लिए हम उसे यह दढ़ निश्चय करता हुआ देखते हैं कि "में इन वज्जियों को चाहे जितने ही बली ये क्यों न हों फिर भी जड़मूल से उखाड़ दूंगा । मैं इन वज्जियों को नष्ट करूंगा । मैं इन बक्जियों का सर्वनाश करूंगा। इस प्रकार कोसल, लिच्छवी और वज्जियों के साथ के
1. रायचौधरी, वही, पृ. वही । देखो प्रधान, वही, पृ. 213-214 |
2. वज्जी विदेहपुत्ते वहत्था, नवमल्लई नवलेच्छई कासीकोसलगा श्रद्धारसवि गणरायाणो पराजहत्था || भगवती, सूत्र 300, पृ. 315 | देखो ग्रावश्यकसूत्र, पृ. 684; हेमचन्द्र, त्रिषष्टि- शलाका, पर्व 10, श्लो 29 पृ. 168; रायचीधरी वही पू. 126 127
3. देखो स्मिथ, वही, पृ. 37; रायचौधरी, वही, पृ. 67; प्रधान, वही, पु. 215 1
4. भगवती में उल्लेख हैं कि वैशाली के युद्ध में प्रजातज्ञज्ञ ने महाशिलारकंटक और रथमुशल का प्रयोग किया था। पहला मन्त्रचालित प्रक्षेपणास्त्र था और वह बड़ी-बड़ी पाषाण खण्ड शत्रुओं पर फेंकता था। दूसरा रक्षास्त्र था जिसमें मुशल लगा रहता था और ब रथ इधर से उधर दौड़ता तो वह मुशल योद्धा सैनिकों को धराशायी कर देता था । इनके विस्तृत विवरण के लिए देखो भगवती, सूत्र 300, 301, पृ. 316, 319 | देखो हरनोली, वही परिशिष्ट 2. पृ. 5960: राजचौधरी, वही. पृ. 129; टानी कथाकोश, पृ. 1791
5. स्मिथ, वही और वही पृष्ठ कृणिक प्रजातशत्रु ने लिच्छवियों, मल्लकियों और कामी कोमल के अठारह महाजनपदों से सोलह पर्वतक चलते रहनेवालों से युद्ध करता रहा था और प्रांत में वह इनका नाश करने में में सफल हो गया था जैसा कि उसने निश्चय किया था हालांकि उसका युद्धोद्देश प्रवरूद्ध था' प्रधान, वही, पू. 215-216 देखो हरनोली वहीं परिशिष्ट पु.
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6. सेबुई, पुस्त. 11, पृ. 1, 2 देखो लाहा, बि. च, सम क्षत्रिय ट्राइब्स ग्रॉफ एशेंट इण्डिया, पृ. 111 मगध और वैशाली के वैमनस्य के विस्तृत विवरण के लिए देखो, वही, पृ. 11-16 1
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