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के लिए लाभ उठाया दीखता है पासादिक मृत्तान्त में कहा गया है कि पावा आने वाले चुण्ड ने ही मल्ल देश के सामगाम के प्रानन्द को तीर्थंकर महावीर के निर्वाण होने का समाचार दिया था और इस प्रानन्द को इस समाचार का महत्व तुरन्त ही समझ में आ गया और इसलिए उसने कहा, "हे मित्र चुण्ड । इस महत्वपूर्ण संवाद को भगवान् बुद्ध के पास ले जाने की ग्रावश्यकता है। इसलिए चलो हम ही यह समाचार उन्हें जा सुनाएं । वे शीघ्र ही बुद्ध के पास पहुंच गा। जिनने उन्हें तब एक लम्बा प्रवचन दिया।"
फिर जैन साहित्य से भो हम जानते हैं कि जैनों के अन्तिम तीर्थकर महावीर के प्रति मल्ल लोगों की परम श्रद्धा-भक्ति थी। जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है। कल्पसूत्र के अनुसार महान तीर्थ कर के निर्वाण दिवस का उत्सव मनाने के लिए नौ लिच्छवियों के साथ नौ मल्लिक सरदार भी थे । इन सब ने उस दिन उपवास व्रत किया था और जब 'ज्ञान का दीपक बुझ गया है तब द्रव्य दीपकों का प्रकाश करें' ऐसा कहते सब ने दीपोत्सव किया था । फिर जैनों के आठवे अगग्रन्थ 'अ तगडदसायो' में उग्र, भोग, क्षत्रिय, और लिच्छवियों के साथ महिलकों का भी उल्लेख किया गया है। जैनों के बाईसवें तीर्थंकर अरिट्रनेमि अथवा अरिष्टनेमि बारवाई (द्वारका) शहर में गए तब मल्लि भी उपयूक सब लोगों के साथ उनका स्वागत और दर्शन करने गए थे।
अब कासी-कोमल के अठारह गगा राज्यों का विचार करें । यहां हम देखते हैं कि वे भी लिच्छवियों और मल्लकों की भांति ही महावीर के भक्त थे । इनने भी महावीर के निर्वाण दिवस पर उपवास किया हया था और दीपोत्सव भी किया था। फिर यह भी हम देख चुके हैं कि जैन साहित्य में ऐसा भी उल्लेख है कि राजा कृगिक ने जब उनके विरूद्ध युद्ध घोषित किया तब राजा चेटक ने मल्ल सरदारों के साथ अठारह कासी-कोमल के गगाराजों को भी अपनी सहायता के लिए निमंत्रित किया था।
कासी कोसल जनपद का विचार करने पर हम देखते हैं कि कासी की प्रजा विदेह और कोसल की प्रजा के साथ शत्रु और मित्र दोनों ही प्रकार के सम्पर्क में प्रायी थी ।" 'सोलह महाजनपदों में से का ी प्रथमतया सम्भवतः अत्यन्त समृद्ध था, और यह बात बौद्ध एवम् जैन दोनों ही स्वीकार करते हैं। पार्श्वनाथ के काल में जैन इतिहास में इसकी महत्ता का विचार पहले ही किया जा चुका है। फिर महावीर भी साधू जीवन में कासी गए थे।' यहां यह भी सूचन कर देना उचित है कि प्रतगडदसानों में वाराणपी के एक राजा अलक्खे का उल्लेख किया गया है कि जिसने भगवती दीक्षा ली थी।
अन्त में हम कोसल का विचार करें। कासी की भांति ही यह भी सोलह व्यापक एवं समृद्ध जनपदों में का एक था और जैन एवं बौद्ध दोनों ही साहित्य में इसका वर्णन है।' भौगोलिक दृष्टि से कोसल आज के अवध प्रान्त से मिलता है और उममें अयोत्या, साकेत और सावत्थी या श्रावस्ती नाम के तीन बड़े नगर होने को कहा गया है।10 इसमें के 'कौसल की राजधानी।। श्रावस्ती में महावीर एक से अधिक वार गए थे और वहां उनका
1. लाहा, बि. च , वही, प. 153-154 । देखो डायलोग्स आफ दी बुद्धा, भाग 3, प. 203 आदि, 203, 212 । 2. याकोधी, वही, पृ. 206 ।
3. वारन्यैट, वही, पृ. 36 । 4. देखो कल्पसूत्र, सुबोध टीका. सूत्र 128. पृ. 121। 5. देखो रायचौधरी, वही, पृ. 44 । 6. वही, पृ. 59-60। 7. देखो आवश्यकसूत्र, पृ221 ; कल्पसूत्र, सुबोध टीका सू. 106 । 8. वारन्यैट, वही, पृ. 96 9. रायचौधरी, वही और वही स्थान । 10. वही, पृ. 62-63 । 11. प्रभान, वही, पृ. 214 । 'सावत्थी राप्ती नदी के दक्षिणी तट पर एक बड़ा विध्वंस नगर है जो नाजकल सहे थ-महेथ कहलाता है और उत्तर-प्रदेश के बेहराइव और गोंडा जिले की सीमानों पर स्थित है।' देखो राय
चौधरी, वही, पृ. 63 । देखो दे, वही, पृ. 189--190 ।
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