Book Title: Updeshmala
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
॥४४॥
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वेइ इमं ॥ ३५ ॥ तब्वेलुब्बूढाए, आगंतव्वं'ति मालियस्स मए । पडिवन्नमासि पिययम !, ता जामि तहिं विसजेसु ॥ ३६॥ सञ्चपइन्ना एसत्ति,-मन्नमाणेण तेणऽणुन्नाया । वच्चंती पहरियपवरभूसा सा पुराओ बहिं ॥ ३७॥ दिवा चोरेहिं तओ, महा
| श्रुतदायकेषु
विनयोपरि निही सो इमो त्ति भणिरेहिं । गहिया नवरं तीए, निवेइओ निययसब्भावो ॥ ३८ ॥ चोरेहिं जंपियं सुयणु !, जाहि सिग्धं परं
श्रेणिकवलेज्जासि । मुसिऊणं जेण तुमं, जहागयं पडिनियत्तामो ॥ ३९ ॥ एवं काहं ति पयंपिऊण संपट्टिया अहद्धपहे । तरलतरतारयाउलसमुच्छलंतऽच्छिविच्छोहो ॥ ४० ॥ रणझणिरदीहदंतो, दूरपसारियरउद्दमुहकुहरो। चिरछुहिएणं लद्धाऽसि, एहि एहि त्ति
कथा । जंपतो ॥४१॥ अच्चंतभीसणंगो, समुडिओ रक्खसो सुदुप्पेच्छो। तेणाऽवि करे धरिया, कहिए तस्सावि सम्भावे ॥ ४२ ॥16 उम्मुक्का आरामे, गंतूणं बोहिओ सुहपसुत्तो। मालागारो भणिओ, सुपुरिस ! साऽहं इमा पत्ता ।। ४३ ॥ एवंविह रयणीए, सभूसणा कह समागया तंसि । इय तेणं सा पुट्ठा, सिटुंतीए जहावित्तं ॥ ४४ ।। अव्वो सच्चपइन्ना, महासईत्ति मन्नमाणेण । चलणेसु निवडिऊणं, मालागारेण लहु मुक्का ॥ ४५ ॥ पत्ता रक्खसपासे, सिट्ठो से मालियस्स वुत्तंतो। अव्वो महप्पभावा, एसा जा उज्झिया तेण ।। ४६ ॥ इय भावितेणं निवडिऊणं पाएसु तेण वि विमुक्का । चोरसमीवे य गया, सिट्ठो तह पुववृत्तंतो ॥४॥ तेहि वि अणप्पमाहप्प-दसणुप्पन्नपक्खवाएहिं । सालंकारच्चिय वंदिऊण सा गिहंमि पट्टविया ॥ ४८ ॥ अह आभरणसमेया, अक्खयअंगा अभग्गसीला य । पत्ता पइम्स पासे, कहियं सव्वं जहा वुत्तं ॥ ४९ ॥ परितुदुमणेण समं तेण, पसुत्ता समत्थरयणि पि । जाए पभायसमए, चिंतियमियं मंतिपुत्तेण ॥५०॥ “छंट्ठियं सुरूवं, समसुदुक्खं अनिग्गयरहस्सं । धन्ना सुत्तविउद्धा, मित्तं महिलं च पिच्छंति ॥५१॥" समपेम्मरसं समरूव-जोव्वणं समसिणेहसब्भावं । समसुहदुक्खं च जणं, समपन्नो जईजणो लहइ ।। ५२ ।। इय भावितेण कया, घरस्स सा सामिणि समग्गस्स। किंच न कीरइ निक्कवड-पेम्मपडिबद्धहिययमि ।। ५३ ।। इय
॥ ४४०॥ पइ-तकर-रक्खस-मालागाराण मज्झओ केण । तच्चागेण कयं दुक्करंति भो मज्झ साहेह ॥५४॥ ईसालुएहिं भणिय, सामी पइणा सुदुकरं विहियं । परपुरिस समीवे जेण पेसिया सव्वरीए पिया ॥ ५५ ॥ भणिय छुहालुएहिं सुदुकरं रक्खसेणे चेव कयं ।

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