________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
640
तुलसी शब्द-कोश
प्रतिपालु : प्रनतपाल + कए० । एकमात्र प्रणत रक्षक । 'प्रनतपालु पालिहि सब
काहू ।' मा० २.३१४.४
प्रनतारति : ( प्रनत + आरति ) । प्रणत जनों के क्लेश । 'सब बिधि तुम्ह प्रनतारति
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हारी । मा० ७.४७.३
प्रनति : सं० स्त्री० (सं० प्रणति ) । प्रणाम, प्रार्थना । गी० ३.१७.८ प्रनमामि : आ० उ० (सं० प्रणमामि ) । प्रणाम करता हूं । मा० ७.१४ छं० १० प्रनय : सं०पु० (सं० प्रणय ) | ( १ ) आत्मीयता, ममत्व ( २ ) परस्पर आसक्ति (३) प्रार्थना ( ४ ) विश्वासपूर्वक अनुराग ( ५ ) कृपाभाव । 'प्रीति प्रनय बिनु ... नासहि ।' मा० ३.२१.११
प्रनवउँ : प्रनमामि (अ० प्रणवउँ ) । 'पुनि प्रनवउँ पृथुराज समाना ।' मा० १.४.६ प्रनाम, मा: सं०पु० (सं० प्रणाम) नमस्कार । मा० १.२.४
प्रनामु, मू : प्रनाम + कए० । नमस्कारमात्र । 'कीन्ह प्रनामु तुम्हारिहि नाई ।'
मा० १.५६.२
1
प्रपंच: सं०पु० (सं०) । (१) विस्तार - छल प्रपंच | ' कीन्हेसि पुनि प्रपंच बिधि नाना ।' मा० १.१२६.६ (२) उलझाने वाला आडम्बर या वाग्जाल । 'मोहिन बहुत प्रपंच सोहाहीं ।' मा० २.३३.६ (३) सृष्टि विस्तार । 'बिधि प्रपंच महं सुना न दीसा ।' मा० २.२३०.८ ( ४ ) माया, सम्पूर्ण प्राकृत तत्त्वमय विश्व । 'परमारथी प्रपंच बियोगी ।' मा० २.६३.३ (५) जगत् की सृष्टि के आधारभूत पंच महाभूतों की रचना पञ्चीकृत सूक्ष्मभूतों से होती है जिसमें प्रत्येक भूत का अपना आधा और शेष चार का आठवाँ आठवाँ भाग मिश्रित रहता है । इस प्रकार प्रपञ्च पञ्चभूतों का मिश्रण होने से जटिल है । इसी प्रकार की जटिल प्रक्रिया, छलना या आडम्बर को प्रपञ्च कहा गया है । उक्त दोनों अर्थ एक साथ द्रष्टव्य हैं— 'रचहु प्रपंचहि पंच मिलि ।' मा० २.२६४ अर्थात् जिस प्रकार पाँच तत्त्वों से प्रपञ्च की सृष्टि होती है उसी प्रकार पाँच मुखिया मिल कर छल प्रपञ्च की रचना करो ।
प्रपंचभय : विश्व सृष्टि का विस्तार + छलनापूर्ण । 'पारद प्रगट प्रपंचमय ।' दो०
२६०
प्रपंची : वि०पु० (सं० प्रपञ्चिन्) । जालिया, छलिया ( प्रपञ्च के कर्ता-धर्ता) । 'हरिहि कहहिं प्रपंची लोग ।' दो० ४१८
प्रपंचु : प्रपंच + कए० । (१) एकीभूत (पञ्चीकृत) सृष्टि प्रसार । 'बिधि प्रपंच गुन अवगुन साना ।' मा० १.६.४ (२) छद्म- जाल + मायाजाल । '२चि प्रपंच भूपहि अपनाई ।' मा० २.१८.६
For Private and Personal Use Only