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सुलसी शब्द-कोश
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महत : (१) सं०पु० (सं० महत्त्व>प्रा० महत्त)। महिमा, शक्ति, औदात्य ।
'मुनि मम महत-सीलता देखी।' मा० ७.११३.४ (२) वि०+क्रि०वि० (सं० महत्) अधिक । 'कलि को कलुष मन मलिन किए महत ।' कवि० ७.६६ (३) वकृ०० (सं० मथत्>प्रा० महत) । मथता-ते; बिलोता-ते। 'पायो
केहि घृत बिचारु हरिन-बारि महत ।' विन० १३३.५ महतत्त्व : सं०० (सं० महत्तत्त्व) । प्रकृति का आदि परिणाम बुद्धि तत्त्व जिससे
अहंकार की सृष्टि होती है और अहंकार से शेष तत्त्व परिणाम लेते हैं। यही महत्तत्त्व समष्टिरूप से सात्त्विक, राजस और तामस भागों में विष्णु, ब्रह्मा और शिव नाम (सांख्य में) पाता है। प्रकृति महतत्त्व शब्दादि गुण देवता ब्योम
मरुदग्नि अमलांबु उ: ।' विन० ५४.२ महतारी : (१) माताएँ। 'अति आनंद मगन महतारी ।' मा० १.२६५.४
(२) माताओं ने । 'कोसल्यादि राम महतारी । प्रेम बिबस तन दसा बिसारी ।'
मा० १.३४५.८ महतारी : सं० स्त्री० (सं० महत्तरार्या>प्रा० महत्तरारिया) माता। मा० २.४२.६
(किसी भी सम्मान्य स्त्री के लिए प्रयोग चलता है ।) महदादि : गोस्वामी जी के (वैष्णव) दर्शन में ३० तत्त्व हैं-माया =मूल प्रकृति;
जीव=पुरुष; स्वभाव; गुण त्रिगुण ; काल; कर्म और २३ महत् आदि तत्त्व । सांख्य दर्शन में महत् आदि तत्त्वों की व्यवस्था दी गई है :मूल प्रकृति का परिणाम महत-तत्त्व है (दे० महतत्त्व)। उससे अहंकार परिणत होता है । अहंकार के सात्त्विक भाग को 'वैकृत अहंकार' कहते हैं। तामस भाग को 'भूतादि अहंकार' और राजस को 'तेजस' कहा जाता है । 'तैजस अहंकार' शेष दोनों का सहयोगी रहता है ओर तब वैकृत से ११ तत्त्व परिणाम लेते हैं-मन, पांच ज्ञानेन्द्रिय तथा पांच कर्मेन्द्रिय । 'भूतादि' से पाँच तन्मात्र परिणाम पाते हैं-शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श-ये सूक्ष्मभूत अथवा पांच ज्ञानेन्द्रियों के विषय कहे गये हैं । सूक्ष्म भूत ही स्थूल रूप में महाभूत बनते हैं--आकाश, तेज, जल, पृथ्वी और वायु । इन २६ तत्त्वों में ईश्वर को जोड़ने से ३० तत्त्व होते हैं । ईश्वर शेष तत्त्वों से विशिष्ट है-वह शेषी अथवा अंशी है, शेष सब उसके अंश तथा शरीर रूप हैं । 'माया जीव सुभाव गुन काल करम
महदादि ।' दो० २०० महन : मथन (प्रा० महण)। महनु : महन+कए। (१) मथन, विनाश । 'मयन महनु पुरदहनु गहनु जानि ।'
कवि० १.१० (२) विनाशक । 'अनंग को महनु है ।' कवि० ७.१६० महर : सं०० (सं० महत्>प्रा० महल्ल) । महाजन =नन्दगोप । कृ० ३८
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