Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books

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Page 592
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुलसी शब्द-कोश 1137 बधुहि छुद्र सस चाहा।' मा० ३.२८.१५ (६) वानर । 'मेरे अनुमान हनुमान हरि-गन मैं ।' गी० ५.२३.२ (७) कृष्ण । मा० १.२०.८ हरिअर : वि.पु. (सं० हरित-तर>प्रा. हरिअर)। अत्यन्त हरा, हरा-भरा, हरे रंग का। हरिअरइ : हराही-हरा । 'मुनिहि हरिअरइ सूझ ।' मा० १.२७५ हरिउ : हरि (विष्ण) भी। विन० २५०.२ हरिऐ : आ० कवा०प्रए० (सं० ह्रियते>प्रा. हरीअइ)। दूर कीजिए, निरस्त किया___ की जाय । 'मति मोर बिभेदकरी हरिऐ।' मा० ६.१११.१६ हरिचंद : सं०० (सं० हरिश्चन्द्र>प्रा. हरिच्चंद)। सूर्यवंश प्रसिद्ध सत्यवती राजा । मा० २.६५.३ हरिजन : ईश्वर भक्त । मा० ७.१०५ हरिजान, ना : (दे० जान) विष्णु-वाहन =गरुड़ । मा० ७.७८.३; ७.८७ ख हरित : वि० (सं.) । हरे रंग का । मा० ७.११७.११ हरितमनि : हरे रंग का मणि= पन्ना। हरितमनिन्ह : हरितमनि+संब० । पन्नों (के) । हरितमनिन्ह के पत्र फल ।' मा० हरितमनिमय : वि० (दे० मय) । पन्नों से रचित । 'बेनु हरितमनिमय सब कीन्हे ।' मा० १.२८८.१ हरितोषन : वि० (सं० हरितोषण) । भगवान् को तुष्ट करने वाला (साधन) । _ 'हरितोषन ब्रत द्विज सेवकाई ।' मा० ७.१०६.११ हरिधाम : हरिपद । मा० ३.३२ हरिन : सं०० (सं० हरिण) । मृग (विशेष) । बर० २६ हरिनख : सं०० (सं०) । बधनहा (व्याघ्र के नखों की माला जो बच्चों को पहनाई जाती है) । हिय हरिनख अति सोभा रूरी।' मा० १.१६६.५ हरिनबारि : मृगजल, मृगतृष्णा, मृगमरीचिका (भ्रान्ति)। 'पायो केहि घृत बिचार हरिन बारि महत ।' विन० १३३.५ । हरिपद : विष्णु लोक (वैकुण्ठ); रामधाम (साकेत धाम), सालोक्य मोक्ष । मा० १.१६२ छं० ४ (सायुज्य मुक्ति का भी अर्थ आता है-जीव शाश्वत रूप से भगवान का अंशरूप बनने का पद पाता है)। हरिपद : हरिपद+कए । अप्रतिम भगवत्पद । 'पाव नारकी हरिपदु जैसें ।' मा० हरिपुर : विष्णुलोक, रामलोक, मोक्ष पद। विन० २२०.५ हरिप्रीता : विष्णु प्रिय (विष्णु देवता वाला) । 'सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।' मा० १.१६१.१ For Private and Personal Use Only

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