Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books
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तुलसी शब्द कोश
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हिंडोल, ला : हिंडोरा । गी० ७.१८.४ हिंडोलना : हिंडोल (सं० हिन्दोलनक)। 'आलि री राघो के हिंडोलना झूलन जैए।'
गी० ७.१८.१ हिंडोलसाल : सं०पु० (सं० हिन्दोल-साल) । वह वृक्ष (साल) जिस में हिंडोला
बंधा हो । गी० ७.१८.४ हि : (क) निश्चयार्थक अव्यय (सं.)। ही । मा० १ श्लोक ३ (ख) अवधी
विभक्ति जो 'प्रति' के समान अर्थ देती है । 'भरतहि अवसि देहु जुबराजू (भरत को)।' मा० २.५०.२ 'रामहि तिलकु काल्हि जौं भयऊ (राम का, राम के लिए)।' मा० २.१६.६ 'राजहि तुम्ह पर प्रीति विसेषी (राजा में) ।' मा०
२.१८.५ 'हिंस : सं०स्त्री० (सं० ह्रषा)। हींस, हीसना (अश्व-शब्द) । 'रथ रव बाजि हिंस
चहुं ओरा।' मा० १.३०१.१ हिंसक : वि० (सं.)। हिंसा करने वाला-वाले, जीवघाती । मा० १.१७६.८ "हिंसा : सं०स्त्री० (सं.)। परपीडन, प्राणिवध, स्वार्थ हेतु या अकारण जीबघात ।
मा० १.१८३ हिएं : हृदय से, में । 'पदपंकज सेवत सुद्ध हिएँ ।' मा० ७.१४ छं० हिए : (१) हिय । हृदय । 'कहउँ हिए अपने की।' मा० २.३०१.२ (२) हिएं।
हृदय में । 'मग लोग कुभोग सरेन हिए-हति ।' मा० ७.१४ छं० । हित : (१) वि० (सं.)। हितकारी, मित्र, प्रियजन । 'हित अनहित मध्यम श्रम
फंदा ।' मा० २.६२.५ (२) इष्ट कार्य, कल्याण । 'मम हित लागि जन्म इन्ह हारे ।' मा० ७.८.८ (३) सं०पु० । प्रति । 'हित दे पद सरोज सुमिरौं ।' विन० १४१.५ (४) क्रि०वि० । को, के लिए (प्रयोजन, साध्य) 'हरि हित आपु गवन बन कीन्हा ।' मा० १.१५३.८ (५) ओर । 'हिंकरि हिंकरि हित हरेहिं
तेही ।' मा० २.१४३.७ हितकारक : हितकारी (सं०) । मा० १.१५४.१ हितकारी : वि०पू० (सं० हितकारिन्) । अपने अनुकूल आचरण करने वाला,
हितू, उपकारी । मा० ७.२२.८ हितनि : हित+संब० । हितों, इष्ट वस्तुओं। हितनि के लाह की।' गी.
१.६६.५ हिताहित : (हित+अहित) । अच्छा-बुरा, अनुकूल-प्रतिकूल । गी० ५.१२.४ हितु : हित+कए । (१) कल्याण (इष्ट फल प्रप्ति) । 'राम सों सामु किए हितु
है।' कवि० ६.२८ (२) उपकार । 'करि हितु हरहु चाप गरुआई।' मा०
१.२५७.६ (३) प्रियजन । 'चितवहिं हितु जानी।' मा० १.२६६.३ हितू : हितु । (१) प्रियजन, सगे संबंधी । 'जेउ कहावत हितू हमारे ।' मा०
१.२५६.१ (२) हितकार्य करने वाला-वाले । 'उधो परम हितू हित सिखवत ।'
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