Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books
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तुलसी शब्द-कोश
हारेहुं : हारने पर भी, हारे हुए में भी। 'हारेहुं खेल जितावहिं मोही।' मा०
२.२६०.८
हारो : हार्यो । थक गया । 'मन तो हिय हारो।' हनु० १६ हार्यो : हारेउ । पराजित हुआ। विन० २४७.३ हाल, ला : (१) सं००+स्त्री० (अरबी वर्तमान काल ; फा० स्थिति, गति)।
दशा, अवस्था । कनक कसिपु कर पुनि अस हाला।' मा० १.७६.२ 'जैसी हाल करी यहि ढोटा।' कृ०३ (२) परिणाम, फल । 'राम बिमुख अस हाल
तुम्हारा ।' मा० ६.१०४.१० हालिहै : आ०भ०प्रए० (सं० हल्लिष्यति>प्रा० हल्लिहिइ)। हिल जायगा,
प्रकम्पमान हो उठेगा । 'मसक व कहै, भार मेरे मेरु हालिहै। कवि० ७.१२० हालु : हाल+कए० . दशा, गति । गी० ५.३.४ ।। हास, सा : सं००+स्त्री० (सं० हास) । (१) हंसने की क्रिया । मा० ७.७७.४
(२) हंसी, परिहास । 'तासु नारि सभीत बड़ि हासा।' मा० ५ ३७.४ (३) स्मित, मुसकुराहट । 'सूचत किरन मनोहर हासा।' मा० १.१९८.७ (४) (सं० हास्य>प्रा० हास) । काव्यरस-विशेष जिसका स्थायी भाव हास है तथा मूर्खता आदि आलम्बन होते हैं । 'तिन्ह कहँ सुखद हास रस एहू ।'
मा० १.६.३ हास-अवास : (सं० हासावास=हास+अवास) कोहबर, घर में देवगृह जहाँ भावर
के बाद वर-वधू जाते और हासविनोद क्रीडा करते हैं। पा०म० १३३ हाहा : मनुहार, अनुनय, खेद, आश्चर्य, पश्चात्तम, आक्षेप, निन्दा आदि का बोधक
अध्यय (सं.)। मा० ६.७० हाहाकार : सं०० (सं०) । खेद, क्लेश, संकट आदि का सूचक कोलाहल शब्द = _हा-हा ध्वनि । मा० १.८७.७; ६.४२.४; ६.६३.५; ६६.७; ७.१०७ क हाहाकारा : हाहाकार । मा० १.६४.८ हिं : (क) अव्यय (सं० हि-निश्चयार्थक) । ही। 'होइ मरन जेहिं बिनहिं श्रम् ।'
मा० १.५९ (ख) (१) हि । को . 'करि बिनती गिरिजहिं गृह ल्याए ।' मा० १.८२.१ (२) अधिकरण विभक्ति-में । 'तपहिं मन लागा।' मा० १.७४.३ (३) से, साथ। 'अस बरु तुम्हहिं मिलाउब आनी। मा० १.८०.४ (ग) आख्यात विभक्ति ब० । 'जहँ चितवहिं तह प्रभु आसीना । सेवहिं सिद्ध
मुनीस प्रबीना । मा० १.५४.६ हिंकरि : पूकु० । हिं-हिं ध्वनि करके । 'हिकरि हिकरि हित हेरहिं तेही।' मा०
२.१४३.७ हिंडोर, रा : संपु० (सं० हिन्दोल)। झूला, पालना । 'पलंग पीठ तजि गोद
हिंडोरा।' मा० २.५६.५
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