Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
1148
तुलसी शब्द-कोश
हीनता : सं०स्त्री० (सं०) । तुच्छया, निस्सारता । 'यह बरनत हीनता घनेरी।'
मा० ७.२२.३ होना : हीन । (१) रहित । 'बल हीना ।' मा० ७.१८.६ (२) क्षुद्र, तुच्छ । 'कपि
चंचल सबहीं बिधि हीना।' मा० ५.७.७ होनी : हीन+स्त्री० (सं० होना) । रहित । 'श्रुति नासा हीनी।' मा० ३.१८.६ हीन : हीन+कए० । एकमात्र शून्य । 'सब बिद्या-हीनू ।' मा० १.६.८ होने : हीन (ब०) । 'दया-दान-हीने ।' विन० १०६.२ होय : हिय । कवि० ६.२२ हीयो : हियो । कवि० ७.१७६ हीर, रा : सं०० (सं० हीर, होरक>प्रा० हीर, हीरअ)। (१) उत्तम रत्न
विशेष । मा० १.१६६.८ (२) सार तत्त्व (गूदा) । 'सेमर सुमन आस करत
तेइ फल बिनु होर ।' विन० १६७.२ हीरक : हीरा । गी० ७.१७.१५ हीर : हीरे को । 'सोभा सुख छति लाहु भूप कहें, केवल कांति मोल हीरै ।' गी०
६१५.२ हुं : हु । भी । 'हमहुं कहबि अब ठाकुर सोहाती।' मा० २.१६.४ 'सपनेहुँ तोपर ___कीपु न मोही।' मा० १.१५.१ हुकरि : पूकृ० (सं० हुंकृत्य>प्रा० हुंकरिअ>अ० हुंकरि)। 'हु' ध्वनि करके ।
'हंकरि हुंकरि सुलवाइ धेनु जन धावहिं ।' पा०म० १४३ हंति : वि०स्त्री० पर सर्ग (दे० हुंते) । अपेक्षा वाली, ओर की (ओर से) । 'सासु
ससुर सन मोरि हुंति बिनय करबि परि पायें ।' मा० २.६८ हुँते : वि.पु० परसर्ग (दे० हुंति) (सं० भूत>प्रा० हुत्त = अभिमुख; सं० भवत्
>प्रा. होत हुत-से) । ओर से, अपेक्षा में । 'पिय बिनु तियहि तरनि हुँते
ताते।' मा० २.६५.३ हु : अव्यय (सं० खलु>प्रा० हु)। भी (निश्चय) । हंकार : सं०० (सं०) । ध्वनिविशेष जो कष्ठ-नासिका-जनित होती है जिससे
विविध भाव (स्नेह, दया, खेद, निषेध आदि) व्यक्त होते हैं। वात्सल्य सूचक
प्रयोग द्रष्टव्य है-'हुंकार करि धावत भई ।' मा० ७.६ छं० हुआहि : आ०प्रब० । हू-हू ध्वनि करते हैं । 'खाहिं हुआहिं अधाहिं दपट्टहिं ।' मा०
६.८८.६ हुत : भूक०० (सं०) । हवन किया हुआ । विन० ४६.८ हुतासन : सं०० (सं० हुताशन) । अग्नि । हनु० १६ हुते : भूकृ००ब० (सं० भूत>प्रा० हुत्त) । थे । 'दिन द्वै जनु औध हुते पहुनाई ।'
कवि० २.२
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612