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तुलसी शब्द-कोश
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हाँह : मैं भी । 'होहु कहावत सब कहत।' मा० १.२८ ख हो : हह अहहु । तुम हो । 'जान सिरमनि हो हनुमान ।' हनु० १६ खा: इहाँ । यहाँ, इस स्थान पर । 'ऊधो, यह ह्यां न कछु कहिबे ही ।' कृ० ४० हब : सं०पु० (सं.)। सरोवर, तड़ाग। मा० १.२२ व: होइ । होकर, रहकर । 'कहूं ह्रजीबो ।' कृ. ६ बबे : भकृ०० (सं० भवितव्य >प्रा० होइअव्व) । होने । 'एक टेक हबे की।'
कवि० ७.८२ ह्र हैं : होइहहिं । कवि ७.१३६ ह है : होइहै। होगा। 'ह है कीच कोठिला धोए।' कृ० ११ ह हौं : होइहउँ । होऊँगा, रहूंगा । 'दोष सुनाये ते अगेहं को होसियार हहौं।'
हनु० १६ व हो : होइहहु । होओगे । 'ह ही लाल कबहिं बड़े बलि मैया ।' गी० १.८.१
ज्ञानेन संगृहीत तुलसी-साहित्य-कोश-कुसुमाली । रमयतु रमा-समेतं श्रीराम मानसारामे ॥
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