Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books
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तुलसी शब्द-कोश
कृ० ४५ यह शब्द स्वतन्त्र रूप से विशेषण का कार्य करता है, यद्यपि मुलतः
एक वचन का है। हिते : हित ही, हितकारी ही । 'बिनव करी अपभयहं तें, तुम्ह परम हित हो।'
विन० २७०.३ हितही : आ०भ० उए । हित होऊँगा, हितकर=सुपथ्य बनू गा, सुपच हो सकूगा
(रुचिकर होऊंगा)। 'त्योंहीं तिहारे हिएं न हितंहीं ।' कवि० ७.१०२ हिम : सं०० (सं.)। (१) बर्फ । 'जलु हिम उपल बिलग नहिं जैसें ।' मा०
१.११६.३ (२) पाला, ओस (कुहरा), जाड़ा । 'घोर घाम हिम बारि बयारी।'
मा० २.६२.४ (३) हेमन्त । हिम रितु अगहन मास सुहावा ।' मा० १.३१२.५ हिमकर : सं०० (सं.) । शीतल किरणों वाला=चन्द्रमा । मा० १.१६.१ हिमगिरि : हिमालय । मा० १.६५.६ हिममानु : सं.पु. (सं.) । शीतल (हिम) किरणों (भान) वाला = चन्द्रमा ।
हनु० ११ हिमभूधर : हिमगिरि । मा० १.१०१ छं० हिमराती : जाड़े का रात, हेमन्त-रजनी । मा० २.१२.१ हिमवंत : सं०पु. (सं० हिमवत् >प्रा० हिमवंत) । हिमालय । मा० १.६८ हिमवंतु : हिमवंत+कए० । मा० १.८२.१ हिमवान, ना : हिमवंत । मा० १.१०३.२ हिमवानु : हिमवान+कए । पा०म०६ हिमसैलसुता : हिमालय पुत्री पार्वती। मा० १.४२.२ हिमाचल : (हिम+अचल) सं० (सं.)। हिमालय । मा० २.१३८.७ हिमु : हिम+कए । बफी या जाड़ा । 'सवै हिम आगी।' मा० २.१६६ हिय : हृदय में (से) । 'सुमति हिय हुलसी।' मा० १.३६.१ हिय : सं०० (सं० हृदय>प्रा० हिय) । मा० ७.४२ हियउ : हिय+कए० (अ.) । हृदय । 'तन पुलकित हरषित हियउ ।' मा० ६ १७. हियरें, रे : हृदय पर, में। 'जानि पर सिय हियरें जब कुंभिलाइ ।' बर० १२ 'मूरति ___ मधुर बस तुलसी के हियरे ।' गी० १.४३.३ हिया : हिय । विन० ३३.५ हियाउ : सं००कए । साहस । 'कासों कहीं काहू सो न बढ़त हियाउ सो।'
विन० १८२.३ हिये : हिए । हृदय में । हनु०६ हियो : हियउ । 'प्रेम परिपूरन हियो।' मा० १.१०१ ई० हिरदय : हृदय । जा०म० ८५
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