Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books

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Page 595
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1140 तुलसी शब्द-कोम हलराव : आ०प्रए । हिलाती-झुलाती है। 'ल उछंग कबहूं हलरावं ।' मा०. १.२००८ हलाको : वि०स्त्री० (अरबी-हलाक-नाई)। मड़ने वाली ठगिनी । 'ऊधौ जू क्यों न कहै कुबरी जो बरी नटनागर हेरि हलाकी ।' कवि० ७.१३४ हलावहिं : आ०प्रब० (सं० हल्लयन्ति-हल्लनं कम्पनम् >प्रा. हल्लावंति>अ० हल्लावहिं)। झिटकते हैं, हिलाते कंपाते हैं। 'खाहि मधुर फल बिटप हलावहिं ।' मा० ६.५.६ हलाहल : सं०पु० (सं० हलाहल हालाहल ; फा० हलाहल)। तीव्र विषविशेष । हलाहलु : हलाहल+कए । विन० २४.४ ।। हले : भूकृ०० ब० (सं० हल्लित>प्रा० हल्लिम)। हिल गये । 'धरनीधर धोर धकार हले हैं।' कवि ६.३३ हलोरि : पूकृ० (सं० हिल्लोलयित्वा>प्रा० हिल्लोलिअ>अ. हिल्लोलि)। तरङ्ग उठाकर, विक्षुब्ध कर । 'कपीसु कयो बात घात उदधि हलोरि के।' कवि० ५.२७ हलोरे : सं०पु०ब० (सं० हिल्लोलक>प्रा. हिब्लोलय) । तरङ्ग। 'देखत स्यामल धवल हलोरे ।' मा० २.२०४.५ हवाले : क्रि०वि० (अरबी-हवाला=भयानक) । भमंकर जकड़ में । 'आजु करउँ खालु काल हवाले ।' मा० ६.६०.८ हसि : अहसि । तू है । 'का अनमनि हसि कह हँसि रानी।' मा० २.१३.५ हमेउँ : आ०-भूकृ.पु+उए । मैं हंसा । 'हसेउँ जानि बिधि गिरा असांची।' मा० ६.२६.२ हस्त : सं०० (सं.)। हाथ । मा० १.६७ हहरात : वक०० । थरथराता-ते (कांपते) । 'उछरत उतरात हहरात मरि जात ।' कवि० ७.१७६ हहरान : भूक०पु । थरथरा उठा, कांप गया। 'पाहरूई चोर हेरि हिय हहरान है।' कवि० ७.८० हहरानी : भूक स्त्री०ब० । थरथरा उठीं, कॉप गयीं। 'हहरानी फौज भहरानी जातुधान की ।' कवि० ६.४० हहराने : भूक००० । हरहरा कर (अंधड़ के समान) चले, कांप उठे । 'हहराने __ बात, भहराने भट ।' कवि० ५.८ हहरि : पूकृ० । (१) दहलकर, थरथरा कर, कम्पित होकर । 'बिहरत हृदउ न हहरि हर ।' मा० २.१६६ (२) ह-ह ध्वनि करके । 'हहरि हहरि हंसे ।" कवि० ६.४२ For Private and Personal Use Only

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