Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books
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तुलसी शब्द-कोश
सनमानहि : सनमान + प्रब० । (१) सम्मान देते हैं । 'सुनि सनमानह सबहि सुबानी । मा० १.२८. ९ (२) सम्मान दें । 'जो सनमानहि सेवकु जानी ।' मा० २.२३४.१
समाना : (१) सनमान । 'कीन्ह सनमाना ।' मा० १.१२५.३ (२) भूकृ०पु० । सम्मानित किया । 'सहित बरात राउ सनमाना । मा० १.३०६.६
सनमानि : सनमान + पूकृ० । आदर देकर । मा० २.२८७
सनमानित : सनमान + वकृ० कवा०पु० । आदर पाता पाते; सम्मानित किया जाता-जाते । 'राम ही के द्वारे पे बोलाइ सनमानियत ।' कवि० ७.२३ सनम मानिये, ए : आ०कवा०प्र० । सम्मानित कीजिए किया जाय किया जाता है । 'सब सों सनेह सबही को सनमानिये ।' कवि० ७.१६८
सनमान : भूकृ० स्त्री०ब० । सम्मानित कीं। 'गंग गोरि सम सब सनमानीं ।' मा०
।
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२. २४५.२
सनमानी : (१) सनमानि । 'सेवहि सनमानी ।' मा० २.१२६०८ (२) भूकृ० स्त्री० । सम्मानित की। 'काहुं न सनमानी ।' मा० १.६३.१ (३) सम्मान पायी हुई । 'नंदसुवन सरमानी ।' कृ० ४८
सनमानु, नू : सनमान + कए० । 'करि सनमानु आश्रमह आने ।' मा० २.१२५.२;
मा० १.७.७
सनमाने : भूकृ०पु०ब० । सम्मानित किये । मा० २.१०
सनमानेउ : भूकृ०पु०कए० । सम्मानित किया । पा०मं० ६५
सनमान्यो : सनमानेउ । गी० १.१७.६
सनमुख : (१) सन्मुख | सामने । मा० ६.७.१ ( २ ) अनुकूल । 'विधि सब विधि मोहि सनमुख आजू ।' मा० २.४२.१
सनाए : भूकृ०पु०ब० । ओतप्रोत कराये, मिश्रित कराये । 'भरि भरि सरवर पिका अरगजा सनाए ।' गी० १.६.७
सनाथ : (१) वि० (सं०) । ( अनाथ का विलोम ) । कृतार्थ, सफल, पूर्णकाम | 'पुर नर नारि सनाथ करि भवन चले भगवान ।' मा० ७.६ (२) सहित, युक्त ।
सनाथा : सनाथ । मा० ४.२२.२
सानाला : वि० (सं० सनाल ) । नाल-दण्ड सहित । 'सोहत जनु जुग जलज
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सनाला । मा० १.२६४.७
सनाह : (१) सं०पु० (सं० सन्नाह) । कवच । 'उठि उठि पहिरि सनाह अभागे ।' मा० २.२६६.२ (२) सनाथ (प्रा० साह ) । दे० सना हैं |
सनाहु : सनाह + कए० । कवच । मा० २.१६०

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