Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books

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Page 562
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुलसी शब्द-कोश 1107 सुरता : सं०स्त्री० (सं० शूरता) । वीरता । मा० १.२६६.८ सूरति : सं० स्त्री० । (१) (अरबी-सूरत) । आकृति, चित्र । कृ० २८ (२) शोभा । गी० ७.१७.२ (३) सुरति । स्मृति, सुध । 'भई है मगन, नहिं तन की सूरति।' गी० ५.४७.२ सूरनि : सूर+संब० । शूरों (के, को) । सूरनि उछाहु कूर कादर डरत हैं।' कवि० ६.४६ सूरा : सूर । वीर । मा० ६.२८.३ सूरी : सं०पु+वि० (सं० सूरि) । विद्वान् । 'राम कथा गावहिं श्रुति सूरी। - मा० ७.१२६.२ सूरो : सूर+कए० (सं० शूर:>प्रा० सूरो)। सुभट । हनु० ३ सूर्पनखा : सूपनखा । गी० ६.२१.२ सूल : सं०० (सं० शूल >प्रा० सूल)। (१) शस्त्रविशेष । 'सूल कृपान परिध गिरिखंडा।' मा० ६.४०.८ (२) शिव का त्रिशूल जो त्रिताप का प्रतीक है । मा० ७.१०६.१३ (३) क्लेश, दुःखा। 'त्रिबिधि सूलहर ।' कृ० २१ मा० ७.१२४ (४) कसक, मनोव्यथा । 'एक सूल मोहि बिसर न का काऊ।' मा० ७.११०.२ (५) सूला। सूली+कष्ट, व्यथा। 'मिटी मोहमय सूल।' मा० १.२८५ सूलघर : सं०+वि० (सं० शूलघर)। त्रिशूलधारी शिव । कवि० ७.१४६ सूलपानि : सूलधर । हनु० १२-१३ सूलप्रद : कष्टदायक । मा० ३.४४ सूलहर : कष्टहरण करने वाला । कृ० २१ सूला : (१) सूल । (२) सं०स्त्री० (सं० शूला) । सूली, फाँसी, बन्धन, जकड़न । 'हृदयं हरष बीती सब सूला।' मा० ४.४.१ गोस्वामी जी ने कर्मबन्धन तथा तज्जनित व्यथा के लिए इसका अधिकाधिक प्रयोग किया है। 'मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।' मा० ७.१२१.२६ सखला : सं०स्त्री० (सं० शृङ्खला) । लोहपाश, जंजीर । 'तुलसिदास प्रभु मोह सूखला छुटिहि तुम्हारे छोरे ।' विन० ११४.५ संग : सं०० (सं० शृङ्ग)। चोटी, शिखर । मा० ७.१६.५ सगनि, न्ह : सृग+संब० चोटियों (पर)। 'मेरु के सृगनि जन धन बसे ।' मा० ६.४१.१ (२) चोटियों (में) । 'गिरि सृगन्ह जनु प्रबिसहिं ब्याला ।' मा० ६.८३.६ संगबेरपुर : सं०पू० (शङ्गवेरपुर)। सिंगरौर=गङ्गातट पर स्थित नगर जिसका राजा गुहनामक निषाद था। मा० २.८७.१ For Private and Personal Use Only

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