Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books

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Page 569
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1114 तुलसी शब्द-कोश सोकु, कू : सोक+कए० । अनन्य शोक । 'अब अपलोकु सोकु सुत तोरा ।' मा० ६.६१.१३; २.८१.४ सोखि : सोषि । सुखाकर । गी० ५.१४.२ सोखिबे : भक०० । सुखाने, शुष्क करने । 'सोखिबे कृसानु पोषिबे को हिमभानु भो।' हनु० ११ सोखे : भूकृ००० (सं० शुष्क>प्रा० सुक्या = सोक्ष-सं० शोषित>प्रा० सोसिय) । सुखा डाले। 'राम के प्रताप रबि सोच सर सोखे हैं।' गी० सोखेउ : सोषेउ । 'कौतुक सागर सोखेउ ।' बर० ५५ सोख्यो : सोखेउ । सुखा डाला । विन० २४७.३ सोग : सोक (प्रा०) । 'लोग सोग श्रब बस गए सोई।' मा० २.८५.६ सोच : (१) सोचइ । सोचता है, शोक करता है । 'सचिव सोच तेहि भांति ।' मा० २.४४ (२) सं०० (सं० शोच्य>प्रा० सोच्च) । चिन्ता । 'नारद चले सोच मन माहीं ।' मा० १.१३१.६ (३) शोक । 'सोच बिकल बिबरन महि परेऊ।' मा० २.३८.७ (४) खुटका, कसक । 'नाम प्रसाद सोच नहिं सपनें ।' मा० १.२५.८ 'सोच, सोचइ : आ.प्रए० (सं० शोचति, शुच्यति>प्रा० सोच्चइ)। चिन्ता करता है, शोक करता है, सोचता है। जो सोचइ ससिकल हि सो सोचइ रोरेहि।' पा०म० ५५ सोचत : वकृ.पु । सोचता-ते । मा० ७.१६.४ . सोचति : वक स्त्री० । सोचती, शोक या चिन्ता करती। 'बैठि नमित मुख सोचति सीता।' मा० २.५८.२ सोचन : भकृ० अव्यय । सोचने, चिन्ता (शोक) करने । 'तनु धरि सोच लाग जनु सोचन ।' मा० २.२६.७ सोचनीय : वि० (सं० शोचनीय)। सोचने योग्य, शोकालम्बन ; शोच्य । मा० २.१७३.५-६ सोचहि, ही : (१) आप्रब० । शोक या चिन्ता करते हैं। 'समुझि काम सुख सोचहिं भोगी।' मा० १.८७.८ 'सकल अबला सोचहीं।' मा० १.६७ छं० (२) ध्यान करते हैं । इंद्रिय रूपरासि सोचहिं सुठि ।' कृ. २६ सोचहि : आ०मए । तू शोक (या चिन्ता) कर। 'अस बिचारि सोचहि जनि माता।' मा० २ ६७.६ सोचहु : आ०मब० । (१) सोचते हो, शोक मनाते या चिन्ता करते हो । 'जासु बिरह सोचहु दिन राती ।' मा० ७.२.३ (२) सोचो । 'सो सोचहु मन माहीं।' कृ० ३३ For Private and Personal Use Only

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